Hasdeo forest movementहसदेव का जंगल छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा की सीमा से लगा है. हसदेव के जंगल की कटाई फिलहाल आंदोलन के चलते बंद हो गई है. गांव वालों को डर है कि जैसे ही उनका आंदोलन धीमा पड़ेगा जंगल की कटाई फिर से शुरु हो गई
दीपक पटेल का एक विडियो वायरल हो रहा है जिसमें वो बता रहें है कि छत्तीसगढ़ में किस तरह अदानी राज चल रहा है यह वीडियो भी उसका उदाहरण है। गुजरात से आकर एक कंपनी छत्तीसगढ़ के लोगों को कह रही है कि वे बाहरी है । आंदोलन रत ग्रामीणों को समर्थन या उनकी बात को मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करने से भी रोका जा रहा है।
कल बिलासपुर के ब्लॉगर दीपक पटेल जो जशपुर से हसदेव के आंदोलन को कवर करने गए थे उन्हे अदानी कंपनी के गुंडों घेरकर एक घंटे तक बंधक बनाकर रखा। उनके पूरे डाटा को डिलीट करवा दिया गया। इस प्रक्रिया में अदानी कंपनी के गुंडों का पुलिस पूरी तरह समर्थन कर रही थी।
कल एक पत्रकार ने बताया कि रिपोर्ट लिखने पर उसके संपादक को नोटिस भिजवाया गया। एक पत्रकार ने कहा कि हसदेव की खबर लिखने पर उसे धमकाया गया।
छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव-विविधता से परिपूर्ण है. हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के लोगों और खेतों की प्यास बुझाता है. यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध वन है जो मध्य प्रदेश के कान्हा के जंगल, झारखंड के पलामू के जंगलों से जोड़ता है. यह हाथी जैसे 25 महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है.
साल 2010 से शुरू हुआ हसदेव का दोहन: हसदेव क्षेत्र में खदान खोलने का सिलसिला साल 2010 में शरू हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इसकी स्वीकृति दी और सूबे में बैठी भाजपा ने इसका प्रस्ताव भेजा. 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो एरिया घोषित किया था. फिर इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति FAC ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे साल 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने निरस्त भी कर दिया.
अडानी की कंपनी मिली खनन की अनुमति: इन सबके बावजूद परसा कोल ब्लॉक का काम शुरू कर दिया गया. यह आवंटन राजस्थान सरकार को दिया गया. राजस्थान सरकार की राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड कंपनी ने इसका एमडीओ अडानी को दे दिया और अब अडानी की कंपनी यहां से कोल परिवहन का काम करती है. जब इस खदान को खोला गया तब केंद्र में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा की रमन सिंह की सरकार थी. इसके बाद शुरू हुआ सियासी खेल.
विष्णुदेव साय के शपथ लेते ही पेड़ कटने शुरू: वक्त गुजरा और 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी. 13 दिसंबर को भाजपा के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने शपथ ग्रहण किया. मंत्रीमंडल का गठन भी नहीं हुआ लेकिन शपथ ग्रहण के सातवें दिन ही हसदेव में पेड़ कटाई फिर शुरू हो गई. इस बार 91 हेक्टेयर के 15307 पेड़ों की कटाई हुई. खुद को पर्यावरण प्रेमी बताने वाले भाजपा नेताओं ने चुप्पी साध ली.
खदान की निलामी केंद्र ने की थी:कोरबा के हसदेव में कोयले का बड़ा भंडार मिला है. केंद्र सरकार ने खदान की माइनिंग के लिए निलामी कर दी. खदान की निलामी होते ही खनन कंपनी ने अपना काम शुरु कर दिया. ग्रामीणों का आरोप है कि खदान के लिए पेड़ों की इतनी बली ले ली गई कि पूरा इलाका जंगल से मैदान में तब्दील हो गया. करीब एक दशक से कोयले के भंडार को बाहर निकलाने के लिए कंपनी के लोग हसदेव का सीना छलनी कर रहे हैं. कांग्रेस की सरकार में भी खदान का विरोध हुआ लेकिन पेड़ों की कटाई का काम नहीं रुका. ग्रामीणों ने जब पेड़ों की कटाई के विरोध में आंदोलन किया तो उल्टे पुलिस बल तैनात कर दिया गया.
जंगल मे हाथी समेत 25 से ज्यादा जंगली जीव रहते हैं. हसदेव जंगल करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला है. हसदेव नदी का पानी जब स्टोर नहीं हो पाएगा तब इंसान और जंगली जीव दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे. हसदेव के जंगल को जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है. जंगल से सटे और आस पास के इलाकों में गोंड, लोहार, उरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. भूगोल के जानकारी इस इस जंगल को मध्य भारत का फेफड़ा भी मानते हैं. जंगल के कटने से पर्यावरण का संतुलन तो बिगड़ेगा ही 10 हजार लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा. करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर जो हाथी रिजर्व क्षेत्र है उस पर आफत मंडराने लगेगा. हाथियों और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं भी बढ़ेंगी.
किसान आंदोलन के मुखिया रहे राकेश टिकैत ने कहा कि क्या इसी दिन के लिए आदिवासी मुख्यमंत्री लोगों ने चुना. राकेश टिकैत ने वीडियो जारी करते हुए कहा कि जिस तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं उससे आने वाले दिनों में जंगल बचेगा ही नहीं. टिकैत ने कहा कि अगर पेड़ों की कटाई नहीं रुकी तो आदिवासियों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन करेंगे.