पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, और तभी से इस दिन पर दान देने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।
छत्तीसगढ़ में पौष पूर्णिमा के दिन बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष 2025 में छेरछेरा 13 जनवरी सोमवार को मनाया जाएगा। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहा जाता है, और इसे दान लेने-देने का पर्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े सभी घर-घर जाकर अन्न का दान लेते हैं, जबकि युवा डंडा नृत्य करते हैं। इस पर्व के दौरान बच्चे और बड़े बुजुर्ग एक अनोखे बोल के साथ दान मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे कहते हैं, छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा, और जब तक घर की महिलाएं अन्न दान नहीं देतीं, तब तक वे कहते रहते हैं।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने प्रदेशवासियों को छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक पर्व छेरछेरा की बधाई और शुभकामनाएं दी है। इस अवसर पर उन्होंने प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की है। साय ने छेरछेरा पर्व की पूर्व संध्या पर जारी अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि छेरछेरा पर्व नई फसल के घर आने की खुशी में पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं होती।
छेरछेरा पर्व क्या है?
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोक पर्व है, जिसे पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है और दान की परंपरा से जुड़ा होता है।
इस पर्व में छत्तीसगढ़ के किसानों में उदारता के कई आयाम दिखाई देते हैं। यहां उत्पादित फसल को समाज के जरूरतमंद लोगों, कामगारों और पशु-पक्षियों के लिए देने की परंपरा रही है। छेरछेरा का दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है। यह बड़े-छोटे के भेदभाव और अहंकार की भावना को समाप्त करता है। सीएम भूपेश ने कहा कि प्रदेश की अमूल्य धरोहरों और पौराणिक परंपराओं का संवर्धन और संवहन हो सके, इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने छेरछेरा तिहार पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया है। उन्होंने कहा है कि हमारी समृद्ध सभ्यता और परंपराओं से भावी पीढ़ी का परिचय कराना हम सबका दायित्व है।