चीन में फैले कोरोना जैसे वायरस HMPV का भारत में तीसरा केस मिला है। अहमदाबाद में सोमवार को 2 महीने के बच्चे में का संक्रमण मिला।जानिए इसके क्या लक्षण और बचाव हैं।
चीन में शुरू हुआ एचएमपीवी वायरस का कहर अब भारत तक पहुंच चुका है।कर्नाटक में दो मामलों की पुष्टि हो चुकी है। वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर दी है। केरल में भी निगाह रखी जा रही है। वहीं, केंद्र सरकार ने डब्लूएचओ से पहले ही कह दिया है कि हमें समय से सारी अपडेट्स देते रहें। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि एचएमपीवी वायरस है क्या और इसके सिम्पटम्स क्या हैं ?
एचएमपीवी कैसे फैलता है
यह वायरस मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आने से फैलता है, या तो खांसने या छींकने से श्वसन बूंदों के माध्यम से, या दूषित सतहों जैसे दरवाज़े के हैंडल या खिलौनों को छूने से। घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों और भीड़भाड़ वाली जगहों से वायरस का फैलाव और बढ़ रहा है।
एचएमपीवी के क्या लक्षण हैं
एचएमपीवी के लक्षण एचएमपीवी के लक्षण गंभीरता में भिन्न हो सकते हैं और आमतौर पर इसमें खांसी, बुखार, नाक बहना या बंद होना और गले में खराश शामिल हैं। कुछ व्यक्तियों को घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ (डिस्पेनिया) का भी अनुभव हो सकता है। कुछ मामलों में, संक्रमण के हिस्से के रूप में दाने भी हो सकते हैं।
केंद्र सरकार ने कहा था- HMPV इस मौसम में सामान्य वायरस चीन में HMPV के बढ़ते मामलों के बीच इमरजेंसी जैसे हालात बनने की बात कही गई थी। हालांकि भारत सरकार ने 4 जनवरी को जॉइंट मॉनीटरिंग ग्रुप की बैठक की थी। इसके बाद सरकार ने कहा था कि फ्लू के मौसम को देखते हुए चीन की स्थिति असामान्य नहीं है और सरकार इनसे निपटने के लिए तैयार है-
किसके लिए खतरनाक
यह कम उम्र के बच्चों, कमजोर इम्यूनिटी वालों और बुजुर्गों के लिए खतरनाक हो सकता है। फेफड़ों की बीमारी से परेशान लोगों के लिए भी यह खतरनाक हो सकता है। वहीं, एचएमपीवी से प्रभावित होने वाले कुछ लोगों में न्यूमोनिया या ब्रोंकोलाइटिस जैसे खतरनाक लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं। यह वायरस फेफड़ों को प्रभावित करने वाले अन्य वायरस जैसा ही है। अमेरिकी लंग एसोसिएशन ने एचएमवी को एक्यूट रैस्पिरेटरी इंफेक्शन के तौर पर पहचाना है। खासतौर पर बच्चों के लिए यह खतरनाक है। सबसे पहले इस वायरस की पहचान साल 2001 में नीदरलैंड में शोधकर्ताओं द्वारा की गई थी। यह जाड़ों में और स्प्रिंग सीजन में फेफड़ों की बीमारी के लिए अहम कारण माना गया है।