लईका के सुग्घर स्वास्थ बर
दाई रही उपास
6 जात के भाजी संग
खाही पसहर के भात
नारी जात बर महतारी बने के खुशी ए जग के ओकर सबले बड़का खुशी आए। महतारी नइ बन पाए के दुःख अउ महतारी बने के सुख के अनुभव एक नारी ही कर सकथे। जेन नारी के कोनो लईका नइ राहय ओला बंजर भूइंयाँ कस देखे जाथे।समाज म किसम-किसम के गोठ होथे।ठड़गी बाँझ अउ न जाने का का नाव धरे जाथे।
कमरछठ तिहार भादो अंधियारी पाख म छठ के दिन मनाये जाथे। कतको मनखे हा हलषष्ठी ल कमरछठ कहिके संघेर देथे अउ बधाई देथे फेर छत्तीसगढ़ म तो हमन कमरछठ ही मनावत आवत हन।
‘हलषष्ठी’ – ए दिन भगवान बलदाऊ(बलराम) के हल ल शस्त्र रूप म स्वीकार करे रिहिस हे तेकर पाए ए दिन ला हलषष्ठी क रूप म आन प्रदेश के मन मनाथे।आजकल सोशल मीडिया अउ आन प्रदेश ले आए मनखे मन के प्रभाव के कारण हमन अपन मूल संस्कृति ल किनारा करत हन।
‘कमरछठ’- भादो अंधियारी छठ के दिन माता पार्वती अउ शिव जी ह पुत्र के रूप म कार्तिकेय भगवान ला पाए रिहिस। कार्तिकेय ला कुमार घलो कहे अउ कुमार ह छठ के दिन जन्म ले रिहिस इही कुमार छठ ह बदल के कमरछठ होइस।महतारी मन अपन लईका के सुग्घर स्वास्थ्य बर कमरछठ के दिन उपास ल रहिथे।
हमर संस्कृति अउ पुरखा मन के बनाए नियम मन कतका सुग्घर अउ पोठ हे। कमरछठ के उपास ह छठ के दिन रहिथे “छै जात के भाजी, छै प्रकार के पेय पदार्थ, छै हिस्सा के परसाद जीव जन्तु मन बर”, माटी के खेलउना,मऊहा या करंज के दातुन, मऊहा के दउना-पतरी,बिन जोते अन्न आदि के प्रयोग अपन आप म बिसेस महत्व राखथें।
बिसेस: सगरी-
पुजा पाठ करे बर दू ठि सगरी कोड़थें।जेमा पुजा के बाद सगरी ल सादा पानी,गंगाजल,दूध,घी,दही,मंदरस ले भरे जाथे फेर आसीस देबर नानहे लईका मन के गोड़ ल घलो डुबोथे।
पसहर भात अउ छै जात के भाजी-
कमरछठ दिन बिसेस बर बिन जोते भूईयाँ के उपजे धान ले परसाद बनाथे इही ल पसहर कहिथे। छै जात के भाजी ल भईंसी के घी म बघार के बनाए जाथे जेमा मुख्य रूप ले मुनगा भाजी रहिथेच। कहे जाथे की जब माता सीता ह बाल्मीकि के आश्रम म राहय त इही पसहर भात अउ बन भाजी मन ल खा के जिनगी बिताए जेन एक सादा जीवन जिए के संदेश देथे।
भईंसी के दूध,दही अउ घी के उपयोग-
भईंसी के दूध दही के उपयोग करे के पाछु कारण ए हावय की सावन भादो म पानी अड़बड़ गिरथे अउ बरसाती जीवाणु,किरा मन भूईयाँ म,हरियर पाना म रथे अउ गाय मन हरियर चारा ल खाथे।भईंसी मन सुक्खा चारा के सेवन करथे जेकर कारण भादो म भईंसी के दूध दही के उपयोग करे के नियम हे।
पोतनी- सफेद रंग के नानकुन कपड़ा ल पिउँरी माटी अउ सगरी के पानी म भींजो के लानथे तहान लईका मन ल पोतनी मार के आसीस देथें।
पुजा पाठ के बाद छै कहानी सुनथे तब उपास ल पुरा माने गे हावय। पोतनी मार के आसीस दे के बाद महतारी मन राँधे पसहर भात अउ भाजी साग ले फरहार करथें। फरहार के पहिली मऊहा पान के दउना म छै हिस्सा जीव-जंतु मन बर निकाले के बाद खुद परसाद पाथे।
र्तमान बेरा म जिहाँ लईका मन दाई-ददा ल सवाल करथें की तुमन मोर बर का करे हव तब ओमन ल ए बात बताना चाही कि लईका मन के सुग्घर स्वास्थ अउ जिनगी बर महतारी ह किसम-किसम के उदिम करथे उपास करथे। ददा ह सुरूज उए के पहिली कमाए ल जाथे। हमर सुग्घर संस्कृति के तिहार कमरछठ संदेश देथे सादा जिनगी जिए के, प्रकृति ले जुरे रहे के, प्रकृति म सबो जीव परानी के बराबर हक हे ए समझे के।
सगरी कोड़ही भोला ल सुमरही,
बढ़ाही पुरखा के रीत।
पिउंरी माटी के पोतनी ले,
दाई दिही आसीस।।
जोहार,आलेख- नागेश कुमार वर्मा ,टिकरापारा रायपुर।