टेरेसा की जयंती है। उनका जन्म को 26 अगस्त 1910 को हुआ था। उन्हें मानवता की मिसाल और शांति की दूत कहा जाता हैं। गरीबों की सेवा करने के लिए नन बनीं तथा पूरे विश्व में मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने मानवता की सेवा के लिए जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को त्याग करके अपना — जीवन दान दिया था।
उन पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन का अधिक प्रभाव था, वह बंगाल के मिशिनरियों के सेवाकार्यों की कहानियां सुनती थीं, जिस कारण उनके मन में भारत आने का विचार पनपने लगा। मदर टेरेसा का असली नाम एक्नेस था। उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करने का फैसला किया और वह आयरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी चली गईं। जहां से वह अंग्रेजी भाषा सीखकर भारत जाने के सपने को पूरा कर सकें। इसके बाद मदर टेरेसा ने कभी अपने परिवार वालों को नहीं देखा।
साल 1929 में एक्नेस भारत पहुंची और दार्जलिंग में रहने लगीं। इसी दौरान उन्होंने बंगाली सीखी और कॉन्वेंट के पास शिक्षण कार्य शुरू किया। साल 1931 में एक्नेस ने पहली बार धार्मिक प्रतिज्ञा ली और अपना नाम मदर टेरेसा रख लिया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता में करीब 20 साल तक लोरेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया। लेकिन मदर टेरेसा का मन कलकत्ता में गरीबी को देखकर काफी द्रवित होता था।
ऐसे बदला जीवन
साल 1943 में आए बंगाल अकाल में और फिर 1946 में साम्प्रदायिक हिंसा ने मदर टेरेसा को अंदर से झझकोर कर रख दिया। इसी दौरान जब वह दार्जलिंग जा रही थीं, तभी उनके अंदर से आवाज आई और उन्हें ऐसा लगा जैसे ईश्वर उनको आदेश दे रहे हैं कि वह गरीबों की सेवा करें। इसके बाद उन्होंने शिक्षण कार्य छोड़कर लोगों की सेवा करने का फैसला लिया।
मदर टेरेसा की संकल्पशक्ति के आगे चुनौतियां भी न ठहर सकीं। धीरे-धीरे युवा महिलाएं उनसे जुड़ने लगीं और उनकी मदद से पुअरेस्ट अमंग द पुअर नाम का धार्मिक समुदाय बनाया। मदर टेरेसा बिना किसी भेदभाव के गरीबों की सेवा करने लगीं और लोग उनके कामों में हाथ बंटाने लगे। बता दें कि मदर टेरेसा ने कोढ़ रोगियों के लिए खूब सेवा की।
साल 1950 में मदर टेरेसा को वैटिकन से उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्वीकृति मिली। यह धार्मिक सिस्टर्स समूह गरीबों को निस्वार्थ सेवा देने का काम कर रहा था। मदर टेरेसा के निधन के समय मिशनरीज ऑफ चैरिटी 120 से ज्यादा देशों में 450 ब्रदर्स और पांच हजार सिस्टर्स काम कर रहे थे।
मदर टेरेसा के प्रेरणादायक उद्धरण:
- “हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते, लेकिन हम छोटे-छोटे कार्य बड़े प्रेम से कर सकते हैं।” –
- “मैं अकेले दुनिया को नहीं बदल सकती, लेकिन मैं पानी पर एक पत्थर फेंककर कई लहरें पैदा कर सकती हूँ।”
- “दयालु शब्द छोटे और बोलने में आसान हो सकते हैं, लेकिन उनकी गूँज सचमुच अंतहीन होती है।“
- “प्रेम की भूख को मिटाना रोटी की भूख को मिटाने से कहीं अधिक कठिन है।”
- “शांति मुस्कान से शुरू होती है।”
- प्रेम कभी कोई नापतोल नहीं करता, वो बस देता है.
- आज के समाज की सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है, बल्कि अवांछित रहने की भावना है.
मदर टेरेसा के नेतृत्व का दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ा है। मिशनरीज ऑफ चैरिटी के साथ उनके काम ने लाखों लोगों, खास तौर पर कलकत्ता की झुग्गियों में रहने वाले गरीब और बीमार लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है। उनकी नेतृत्व शैली, जिसमें निस्वार्थता, विनम्रता और सेवा पर जोर दिया गया, कई लोगों के लिए प्रेरणा रही है और आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
गरीबों और बीमारों की सेवा करने के उनके अथक प्रयासों ने न केवल उन लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की, जिनकी उन्होंने सेवा की, बल्कि गरीबों की दुर्दशा और दूसरों की सेवा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद की। अपने नेतृत्व और उदाहरण के माध्यम से, मदर टेरेसा ने दिखाया है कि एक व्यक्ति दुनिया में बदलाव ला सकता है, और दूसरों की सेवा करके, हम दुनिया को बेहतर के लिए बदल सकते हैं।
उनके नेतृत्व को कई लोगों ने स्वीकार किया है और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार, 1985 में प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम और 1997 में कांग्रेसनल गोल्ड मेडल शामिल हैं।