
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विवादित फैसले पर सख्त रुख अपनाते हुए उस पर तत्काल रोक लगा दी है। यह मामला एक यौन उत्पीड़न के आरोप से जुड़ा था, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘स्तन पकड़ना और पजामा की डोरी खींचना’ बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियां असंवेदनशील और अमानवीय हैं। कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले में जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला?
17 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि महिला के स्तन को पकड़ना और निचले वस्त्र की डोरी खींचना केवल ‘अपराध करने की तैयारी’ के अंतर्गत आता है, न कि बलात्कार के प्रयास के तहत। यह फैसला न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा सुनाया गया था।
मामला 2021 में एक नाबालिग लड़की के कथित यौन उत्पीड़न से जुड़ा था, जहां तीन आरोपियों – पवन, आकाश और अशोक ने उसे उसके घर छोड़ने के बहाने रास्ते में हमला करने की कोशिश की थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “वर्तमान मामले में, आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने पीड़िता के स्तन को पकड़ लिया और आकाश ने पीड़िता के पजामे को नीचे लाने की कोशिश की और इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने उसके पजामे की स्ट्रिंग तोड़ दी और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप के कारण उन्होंने पीड़िता को छोड़ दिया और घटना स्थल से भाग गए।”
आदेश में आगे कहा गया, ‘यह तथ्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि आरोपी व्यक्तियों ने पीड़िता के साथ बलात्कार करने का फैसला किया था क्योंकि इन तथ्यों के अलावा पीड़िता के साथ बलात्कार करने की उनकी कथित इच्छा को आगे बढ़ाने के लिए कोई अन्य कृत्य नहीं किया गया है।”