परमिंदर ने इस स्टार्टअप की शुरुआत पराली जलाने की समस्या को हल करने के लिए की है.
आमतौर पर पराली के मामले 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक पीक पर रहते हैं। इसमें भी 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक पराली जलाने के सबसे अधिक मामले आते हैं। पराली की मॉनिटरिंग भी 15 सितंबर से 30 नवंबर तक ही की जाती
पराली जलाना किसानों के लिए उतना नकुसानदेह नहीं होता. बल्कि यह एक परंपरागत तरीका बन गया है. लेकिन इससे बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलता है. ऐसे में किसानों पर दबाव डाला जाता है कि वे पराली ना जलाएं लेकिन पराली हटाने की समस्या का वैकल्पिक सामाधान तलाशना एक चुनौती बन जाती है.
कितना खतरनाक है पराली का प्रदूषण
पराली जलने से कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसे निकलती हैं जिनसे गंभीर वायु प्रदूषण होता है. इसका मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर भी होता है. इससे त्वचा और आंखों में जलन, गंभीर तंत्रिका संबंधी, हृदय संबंधी और श्वसन रोग हो सकते हैं. इनमें अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज (COPD), ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों की क्षमता का क्षरण और कैंसर जैसी बीमारीयां तक हो सकती हैं.
परमिंदर ने इस स्टार्टअप की शुरुआत पराली जलाने की समस्या को हल करने के लिए की है. उनके इस स्टार्टअप में पराली से बने ‘इको-फ्रेंडली टाइल्स’ तैयार किए जाते हैं. इनका इस्तेमाल घरों की छतों और दीवारों को सजाने के लिए किया जा सकता है. को परमिंदर ने बताया कि पराली जलाने के बजाय इसे रीसाइकल करके अच्छे प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं. ये न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि किसान भी इससे पैसे कमा सकते हैं. उनके लिए ये इनकम का अच्छा स्रोत है.वे कहते हैं, “उत्तरी भारत में सबसे ज्यादा फायदा ये है कि यहां रॉ मटेरियल (पराली) बहुत है. और किसी भी कंपनी का 50 प्रतिशत तक काम वहीं पूरा हो जाता है जब रॉ मटेरियल मिल जाता है. मेरे पास पराली का स्टॉक तो था. इसके लिए दस साल तक मैंने रिसर्च की. हालांकि, पहले दो प्रोडक्ट डिजाइन किए, लेकिन उनमें मैं सफल नहीं हो पाया. 2022 में कंपनी को लेकर काम शुरू किया था. इस पर पूरी रिसर्च करके अभी तीन से चार महीने में प्रोडक्शन प्लान पर भी मैं काम करने जा रहा हूं.”
क्यों शुरू किया पराली से जुड़ा स्टार्टअप ?
परमिंदर इस स्टार्टअप को शुरू करने के पीछे के मकसद को बताते हैं. वे कहते हैं, “स्टार्टअप शुरू करने के पीछे का सबसे बड़ा मोटिव था कि पराली के जलाने को कम किया जाए. और इसे केवल एक ही तरीके से कम किया जा सकता है: पराली की कीमत तय करके. जिस दिन से पराली की कीमत मिलने लगेगी और ये बिकनी शुरू हो जाएगी उस दिन से लोग पराली में आग लगाना बंद कर देंगे. क्योंकि सभी ये सोचते हैं कि ये फालतू चीज है, इसे फेंक दो या फिर जला दो. अगर किसी चीज की वैल्यू होगी तो उसको कोई जलाएगा नहीं.”
अब अगर इसके फायदों की बात करें, तो इसको लेकर परमिंदर ने कई सारी चीजें बताईं-
- पर्यावरण की सुरक्षा: पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है. इस स्टार्टअप के माध्यम पराली का रीसायकल किया जाता है, जिससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जाता है.
- किसानों की मदद: इस प्रोडक्ट को बनाने में किसानों की पराली का उपयोग होता है. इससे बदले में उन्हें पैसे मिलते हैं. इसके अलावा, पराली जलाने के कारण जो जुर्माना या उसे जुड़ी सभी से उन्हें छुटकारा मिलता है.
- कम लागत: पराली से बनी टाइल्स पारंपरिक टाइल्स की तुलना में सस्ती होती हैं. इसका मतलब है कि ये टाइल्स एक किफायती और एक इको फ्रेंडली ऑप्शन देती हैं.
- मजबूती और टिकाऊपन: इन टाइल्स की गुणवत्ता बेहतर है. ये टाइल्स सामान्य टाइल्स की तरह मजबूत होती हैं और ये ज्यादा समय तक चलती हैं. इसके साथ ही पराली टाइल्स में थर्मल इंसुलेशन की क्षमता होती है, जो गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्मी बनाए रखने में मदद करता है.
- लोकल प्रोडक्शन: ये प्रोडक्ट पूरी तरह से लोकल लेवल पर बनता है, जो न केवल पर्यावरण को बचाने में मदद करता है बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करता है.
इसको बनाने के लिए मटेरियल कहां से आता है?
इस प्रोडक्ट का मुख्य मटेरियल पराली है, जिसे पंजाब के किसानों से इकट्ठा किया जाता है. जो आमतौर पर जलाकर नष्ट कर दी जाती है, अब एक कीमती संसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह किसानों से सीधा लिया जाता है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसानों को उनके पराली के बदले उचित मूल्य मिले सके.
इसके अलावा, अन्य सामग्रियों जैसे रेजिन, बाइंडिंग एजेंट्स और रंगीन पिगमेंट्स का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि इन टाइल्स को और अधिक आकर्षक और टिकाऊ बनाया जा सके. अब अगर कीमत की बात करें, तो परमिंदर के मुताबिक, पराली से बनी टाइलों की निर्माण लागत पारंपरिक टाइलों की तुलना में काफी कम है. वे कहते हैं, “अभी तक जितनी गिनती हमने की है उसके हिसाब से मैन्युफैक्चर करने की कास्टिंग डेढ़ सौ के आसपास आती है. मार्केट में टाइल के तीन तरह के साइज उपलब्ध हैं. इनकी कीमत पांच सौ रुपए तक जाती है. हमारी टाइल्स साउंड प्रूफिंग के लिए थिएटर में इस्तेमाल हो सकती है.”