Wayanad Landslides: वायनाड में 2019 में भी भूस्खलन की घटना हुई थी। उस भूस्खलन की घटना में 17 लोगों की जान चली गई थी। इन घटनाओं के पीछे प्रमुख वजह यहां की मिट्टी और स्थलाकृति को माना जा रहा है।
केरल के वायनाड जिले में प्राकृतिक आपदा ने ऐसा कहर बरपाया कि पल भर में कई लोग मौत के मुंह में समा गए। मलबे के बीच से 123 लोगों के शव बरामद कर दिए हैं और अभी मौत का आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। अलग अलग अस्पतालों में मौत का मंजर साफ नजर आता है। चारों तरफ चीख-पुकार मची है और लोग मृतकों के बीच अपने प्रियजनों को तलाश रहे हैं। जिन लोगों को अपने परिचितों के शव मिले, वे सदमे में आ गए और जो अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आतीं हैं।
पीएम मोदी ने केरल के सीएम पिनरई विजयन से की बात
जेपी नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से बात की है, केंद्रीय एजेंसियों को लगाया गया है और राज्य सरकार के साथ समन्वय के साथ काम किया जा रहा है। नड्डा ने कहा कि प्राथमिकता लोगों के शवों को निकालना है और जिनके बचने की संभावना है, उन्हें तुरंत बचाने का प्रयास करना है। उन्होंने कहा कि आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं को सक्रिय किया गया है और पूरी सरकार इसमें अति सक्रिय होकर काम कर रही है। उन्होंने कहा, ‘सरकार की तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी।’ उन्होंने कहा कि यदि कोई सुझाव भी होंगे तो सरकार उन पर अमल करेगी।
आखिर भूस्खलन की वजह क्या है?
वायनाड में भूस्खलन की घटना कोई नई नहीं है। हां, इस बार घटना का असर व्यापक हुआ है। 8 अगस्त, 2019 को वायनाड के ही पुथुमाला इलाके में त्रासदी हुई थी। उस भूस्खलन की घटना में 17 लोगों की जान चली गई थी। करीब पांच साल बाद इसी तरह की एक घटना पास के मेप्पाडी में हुई है। भारी बारिश के दौरान वायनाड में कई जगहों पर भूस्खलन सक्रिय है, लेकिन ऐसी आपदा किसी ने नहीं सोची थी।
एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, कलपट्टा के वैज्ञानिक जोसेफ जॉन ने स्थानीय अखबार मनोरमा को वायनाड के भूस्खलन क्षेत्रों और स्थलाकृति के बारे में जानकारी दी। जोसेफ ने कहा कि इन घटनाओं के पीछे प्रमुख वजह यहां की मिट्टी है। वायनाड में पिछले दो हफ्ते से लगातार बारिश हो रही है। यहां की मिट्टी को सोखने की क्षमता से अधिक पानी मिलता है। वायनाड, मुंडक्कई और चूरलमाला में भूस्खलन की घटनाएं ‘ब्लैक लेटरेट’ नामक मिट्टी में होती हैं। यह एक प्रकार की मिट्टी है जो अधिक कठोर नहीं होती और पानी को जल्दी से सोख लेती है और जल्दी से बहा भी देती है। जब लगातार भारी वर्षा होती है, तो मिट्टी सारा पानी जमीन में सोख नहीं पाती है।
सीयूएसएटी रडार रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. एमजी मनोज ने ‘मनोरमा ऑनलाइन’ को बताया कि मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता सीमित होती है। हर मिट्टी की जल धारण क्षमता अलग-अलग होती है। यदि आप पानी में थोड़ी सी चीनी डालेंगे तो वह घुल जाएगी। लगातार डालने पर यह घुलेगी नहीं। यही हाल मिट्टी का भी है। यदि लगातार बारिश होती रहे तो पानी सोख नहीं पाता। यदि पानी सीमा से अधिक पहुंच गया तो मिट्टी उसे स्वीकार नहीं करेगी। जब ऐसा होगा तो पर्वतीय जल में भूस्खलन हो सकता है।