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ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने कैंडिडेट्स शतरंज टूर्नामेंट जीतकर रचा इतिहास

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भारत के 17 वर्ष के ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने कैंडिडेट्स शतरंज टूर्नामेंट जीतकर इतिहास रच दिया और वह विश्व चैंपियनशिप खिताब के सबसे युवा चैलेंजर बन गए। उन्होंने 40 साल पुराना गैरी कास्पोरोव का रिकॉर्ड तोड़ा। गुकेश ने 14वें और आखिरी दौर में अमेरिका के हिकारू नकामूरा से ड्रॉ खेला। विश्व चैंपियन के चैलेंजर का

निर्धारण करने वाले इस टूर्नामेंट उनके 14 में से नौ अंक रहे। वह साल के आखिर में मौजूदा विश्व चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को चुनौती देंगे। चेन्नई के रहने वाले गुकेश ने कास्पोरोव का रिकॉर्ड भी तोड़ा। कास्पोरोव 1984 में 22 साल के थे जब उन्होंने रूस के ही अनातोली कारपोव को विश्व चैंपियनशिप खिताब के लिए चुनौती दी थी।

कौन हैं डी गुकेश : गुकेश डी का पूरा नाम डोमाराजू गुकेश है और वे चेन्नई के रहने वाले हैं। गुकेश का जन्म चेन्नई में 7 मई 2006 को हुआ था। उन्होंने 7 साल की उम्र में ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था। उन्हें शुरू में भास्कर नागैया * ने कोचिंग दी थी। नागैया इंटरनेशनल स्तर के चेस खिलाड़ी रहे हैं और चेन्नई में चेस के होम ट्यूटर हैं। इसके बाद विश्वनाथन आनंद ने गुकेश को खेल की जानकारी देने के साथ कोचिंग दी। गुकेश के पिता डॉक्टर हैं और मां पेशे से माइक्रोबायोलोजिस्ट हैं।

ड्रॉ की थी जरूरत : गुकेश को जीत के लिए ड्रॉ की ही जरूरत थी और उन्होंने नकामूरा के खिलाफ कोई कोताही नहीं बरती। दोनों का मुकाबला 71 चालों के बाद ड्रॉ पर छूटा। दूसरी ओर कारुआना और नेपाग्नियाश्चि की बाजी भी ड्रॉ रही। अगर दोनों में से कोई जीतता तो टाइब्रेक होता। कारुआना, नेपाम्नियाश्चि और नकामूरा तीनों के 8.5 अंक रहे और वे संयुक्त दूसरे स्थान पर रहे।

78.5 लाख मिला ईनाम : 88500 यूरो ( रुपए) ईनाम के तौर पर भी मिले। इस टूर्नामेंट की कुल ईनामी राशि पांच लाख यूरो है। वह यह प्रतिष्ठित टूर्नामेंट जीतने वाले विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे भारतीय बन गए । पांच बार के विश्व चैंपियन आनंद ने 2014 में खिताब जीता था।

पिता का छूटा काम : रजनीकांत ने 2017-18 में अपने पेशे से विराम लिया और बेहद की कम बजट में अपने बेटे के साथ दुनिया भर का सफर पूरा किया। इस दौरान परिवार का खर्च चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां ने उठाई। गुकेश के बचपन के कोच विष्णु प्रसन्ना ने कहा, ‘उनके माता-पिता ने बहुत त्याग किए हैं। उनके पिता ने अपने करियर की लगभग बलि चढ़ा दी जबकि उनकी मां परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। गुकेश और उनके पिता ज्यादातर समय यात्रा कर रहे होते हैं। यात्रा के कारण गुकेश के माता पिता को एक दूसरे से मिलने का भी मौका बेहद मुश्किल से मिलता है।’

चौथी के बाद नहीं गए स्कूल : चिकित्सकों के परिवार से आने के बावजूद गुकेश बचपन से ही शतरंज को लेकर जुनूनी रहे हैं। उनके समर्पण को देखते हुए, उनके माता-पिता ने उन्हें चौथी कक्षा के बाद पूर्णकालिक स्कूल जाने से रोकने का फैसला किया। प्रसन्ना ने कहा, ‘वह कुछ समय से किसी भी परीक्षा में नहीं बैठा है। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि वह इस स्तर पर अकादमिक रूप से कुछ भी करने की कोशिश कर रहा है। मुझे नहीं पता कि वह इसमें वापस जाएगा या नहीं। उसकी मां हालांकि इस चीज को लेकर थोड़ी चिंतित जरूर रहती है।’

नहीं था कोई प्रायोजक : गुकेश के पास कोई प्रायोजक नहीं था और उन्हें पुरस्कार राशि और ‘क्राउड- फंडिंग से अपने वित्त का प्रबंधन करना पड़ता था, लेकिन इन सबके बावजूद वह पिछले साल अपने आदर्श विश्वनाथन आनंद को पछाड़कर भारत के खिलाड़ी बनने में सफल रहे।

5वें स्थान पर रहे प्रज्ञानानंदा : भारतीय ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञानानंदा सात अंक लेकर पांचवें स्थान पर रहे जिन्होंने अजरबैजान के निजात अबासोव को हराया। विदित गुजराती ने फ्रांस के फिरोजा अलीरजा से ड्रॉ खेला और वह छठे स्थान पर रहे। अलीरजा सातवें और अबासोव आठवें स्थान पर रहे।

Janmat News

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