आज हम बात कर रहे हैं प्रदेश के सबसे गरीब उम्मीदवार शान्ति बाई मरावी की जो इस लोकतंत्र की ख़ूबसूरती पर चार चाँद लगा रही हैं। शहरी आभामंडल से दूर वादियों के बीच रहने वाली आदिवासी बैगा समाज की शांतिबाई का मुकाबला ज्योत्सना महंत और सरोज पांडेय जैसे कद्द्वार और बड़े चेहरों से हैं।लोकतांत्रिक प्रणाली की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यही हैं कि यहाँ चुनाव हर कोई लड़ सकता हैं। सिस्टम उन्हें मौक़ा देता हैं जूझने का, संघर्ष का, लड़ने का। ये और बात हैं कि कुछ ही इस लड़ाई को जीत पाते हैं। हार पर गुमनाम हो जाते हैं और जीतकर मानों बाजीगर। बहरहाल शांति बाई के पास दो बैंक खाते हैं। एक खाली हैं तो दूसरे खाते में मामूली रकम। खुद के नाम पर एक एकड़ से कुछ ज्यादा जमीन हैं। सादगी का गहना पहने शांति बाई के पास सोने-चांदी भी नाममात्र के हैं जिसका जिक्र उन्होंने अपने शपथ पत्र में किया हैं। संयुक्त परिवार में रहने वाली शांति बाई चुनाव लड़ रही हैं इसपर उनके परिजनों को भी कोई खास दिलचस्पी नहीं हैं, हां उनके पति शांति बाई के साथ हैं और कुछ गाँवों से समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं।शांति बाई ने बताया हैं कि वह पहले भी सरपंच और जनपद का चुनाव लड़ चुकी हैं। बैगा समाज के लिए किसी ने काम नहीं किया और इसी बात ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया। शांति बाई का कहना हैं कि अगर उन्हें कोई प्रलोभन दे तो वह उस झांसे में नहीं आएगी हालांकि अबतक किसी ने भी उन्हें उम्मीदवारी वापस लेने को नहीं कहा हैं। शांति बाई कहती हैं कि अब जब लड़ रहे हैं तो लड़ेंगे, पीछे क्यों हटेंगे। शांति बाई के गाँव की सड़क भी पक्की नहीं हैं। कच्चा मकान हैं लेकिन जज्बा बेहद पक्का। शांति बाई भारतीय लोकतंत्र की श्रेष्ठ उदाहरण हैं, वह इस प्रक्रिया की ख़ूबसूरती हैं। ” देखना दिलचस्प की शांति बाई इस चुनाव में चमकते चेहरों को कितनी चुनौती दे पाती हैं।
22 November 2024/
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