11 जून को इज़रायल ने हिज़बुल्लाह के एक बड़े फील्ड कमांडर तालिब समीर अब्दुल्लाह को मार गिराया. इसके बदले में हिज़बुल्लाह ने इज़रायल के 15 सैन्य ठिकानों पर 150 रॉकेट और 30 ड्रोंस से हमले किए हैं.!
ये थे इज़रायली सरकार के स्पोक्स पर्सन डेविड मेंसर. जो कह रहे थे हम हिज़बुल्लाह को मुंह तोड़ जवाब देंगें. हिज़बुल्लाह 7 अक्टूबर से ही इज़रायल के ख़िलाफ़ जंग में शामिल है. वो इज़रायल की नॉर्दन बॉर्डर से लगातार हमले कर रहा है. लेकिन हालिया हमले ने जंग का फोकस ही बदल दिया है. दरअसल 11 जून को इज़रायल ने हिज़बुल्लाह के एक बड़े फील्ड कमांडर तालिब समीर अब्दुल्लाह को मार गिराया. इसके बदले में हिज़बुल्लाह ने इज़रायल के 15 सैन्य ठिकानों पर 150 रॉकेट और 30 ड्रोंस से हमले किए हैं. हिज़बुल्लाह का दावा है कि 7 अक्टूबर की जंग के बाद से ये उसका इज़रायल के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा हमला है. हमास इज़रायल की लड़ाई के चलते मध्य पूर्व बड़ी नाज़ुक स्थिति में है. ऐसे में ताज़ा हमलों ने तनाव और बढ़ा दिया है.
तो समझते हैं!
कैसे बना हिज़बुल्लाह?
साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. अयातुल्लाह रुहुल्लाह खोमैनी ईरान के सुप्रीम लीडर बने. उन्होंने क्रान्ति के बाद तारीखी जुमले कहे, इन जुमलों ने कई मुस्लिम मुल्कों के लीडरान की नींद उड़कर रख दी. क्या कहा था खोमैनी ने?खोमैनी इस्लामिक क्रांति के एक्सपोर्ट की बात कर रहे थे. उन्हें जल्द ही इसके लिए एक ज़मीन नज़र भी आ गई. ये ज़मीन ईरान से लगभग डेढ़ हज़ार किलोमीटर दूर थी. लेबनान. दरअसल लेबनान में 1965 में सुन्नी, शिया और ईसाई तीनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई. ये लड़ाई सिविल वॉर में तब्दील हो गई. ये लड़ाई 15 सालों तक चली. इससे लेबनान कमज़ोर पड़ गया. फिर 1978 में फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (PLO) पर इज़रायल ने हमला किया. उसने PLO को खदेड़ने के लिए अपनी सेना लेबनान में उतार दी. इज़रायल ने साउथ लेबनान पर कब्ज़ा भी कर लिया. अपनी ज़मीन पर विदेशी सैनिकों को देखकर शिया गुट ने विद्रोह कर दिया. उधर ईरान अपने यहां की इस्लामिक क्रांति को बाकी के अरब देशों में फैलाना चाहता था. उसे लेबनान में उपजाऊ ज़मीन दिखाई दी. ईरान ने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर की मदद से लेबनान में शिया विद्रोहियों का गुट तैयार किया. इसका नाम हिज़बुल्लाह रखा गया.
क्यों बनाया गया हिज़बुल्लाह?
-इसके तात्कालिक कारण तो इज़रायली सेना को लेबनान से पीछे हटाना था. लेकिन बाद में इस संगठन ने इज़रायल के ख़िलाफ़ कई हमले किए. दूसरे देशों में भी इज़रायली नागरिकों पर हमले में संगठन का नाम आता रहा.
-साल 2000 में हिज़बुल्लाह इज़रायली सेना को पूरी तरह से लेबनान से खदेड़ने में कामयाब रहा. इस उपलब्धि के बाद हिज़बुल्लाह ने खुद को अरब की पहली ऐसी सेना के रूप में पेश किया जो इज़रायल को सफलतापूर्वक हराने में कामयाब रही है.
-इज़रायल ने 1967 के बाद सीरिया के गोलन हाइट्स और फिलिस्तीन के कई हिस्सों पर पर अवैध कब्ज़ा किया हुआ है. वेस्ट बैंक में कई अवैध यहूदी बस्ती बसाई हुई हैं. हिज़बुल्लाह अब इन कब्ज़ो के ख़िलाफ़ संघर्ष करता है.
-अब हिज़बुल्लाह का मकसद इज़रायल को हराना और मिडिल ईस्ट से उपनिवैशिक ताकतों का खात्मा करना बन गया है.
हिज़बुल्लाह, हमास से अलग कैसे?
दोनों अलग-अलग संगठन हैं. लेकिन इज़रायल के ख़िलाफ़ दोनों के उद्देश्य एक हैं. हिज़बुल्लाह के चीफ़ हसन नसरल्लाह ने हमास के 7 अक्टूबर वाले हमले पर एक आधिकारिक बयान दिया था. इसमें उन्होंने कहा था कि हिज़बुल्लाह हमास के हमले में इज़रायल के ख़िलाफ़ पहले दिन से ही लड़ रहा है.तो फर्क क्या है?
– दोनों के मकसद अलग हैं. हमास का मकसद फिलिस्तीन की आज़ादी है. हिज़बुल्लाह पूरे मिडिल ईस्ट में उपनिवेश के ख़िलाफ़ लड़ने की बात करता है
– हमास एक सुन्नी संगठन है, जबकि हिज़बुल्लाह एक शिया संगठन है.
– हमास गाज़ा में ऑपरेट करता है. उसका पॉलिटिकल ऑफिस क़तर में है. जबकि हिज़बुल्लाह लेबनान से काम करता है.