ए जनम हमर पाछु जनम के अच्छा करम के सेती मिले हे अइसे कहे जाथे अउ हो सकथे की अइसनेच हो। 84 लाख योनी म भटकथे ता मनखे जनम लेथे।
दाई ददा हमर ए दूनिया म आए के माध्यम हरय जेकर मन के मया निस्वार्थ होथे। हमन ल छोटे ले बड़े करथे, हमर अच्छा-बुरा अउ छोटे ले बड़े होए के रद्दा म कतको हमर पीरा ल सहिथे लइका कइसनो राहय ओकर बर अच्छा ही सोचथे। जब लइका सुजान हो जाथे ता हमर दाई-ददा ल एक ठन उम्मीद हो जाथे अब हमर लइका हमर सहारा बनही त का दाई ददा घलो स्वार्थी होथे? अपन सहारा बर?? जिनगी के सुग्घर अंत बर?? एमा मोर दू राय हे पहिली की दाई ददा कभू स्वार्थी नई होए काबर की अपन पेट काट के हमला दूनिया म लानथे, अपन भुख ल बिसार के लइका के पेट भरथे ता फेर स्वार्थ का बात के।
दूसर मत हे कि दाई ददा स्वार्थी होथे। कहिथे कि जब कोनो मनखे बुता करथे ता ओला ओकर प्रतिफल चाहिए रथे अउ भगवान ले घलो हमन इही उम्मीद राखथन, वइसने दाई ददा ल घलो ए उम्मीद रहिथे की बुढ़ापा म लइका हमर सहारा बनही अउ इही उंकर स्वार्थ बन जाथे।
का बुढ़ापा म सहारा बनना दाई ददा के मया के मोल चुकाना हरय?? नहीं, एकर मन के मया के मोल लगाए ही नइ जा सकय फेर जब लइका के जवान होए के बाद ओकर बिहाव होथे ओकर लोग लइका आथे तब जेन पीरा ओ सहिथे तभेच उन ल अपन दाई ददा के पीरा के अहसास होथे।
लुटावंव तुहँर बर,मया जतका हे ए जग में
फेर जनम लेवँव मैं ह, तुहँर लइका बन के।
कोनो नइ आए काकरो बर सब के जनम ओकर पाछु जनम के करम ले होथे। काकरो मिलना एक संजोग अउ जुन्ना नता हरय।हमन अपन दाई ददा के अंश मात्र हन। हाँ जिथन अपन खुशी बर, अपन बर, अपन स्वार्थ बर काबर कि कोनो काकरो बर नइ जिए सब अपन लिए जिए बर आथे।