भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “बहुत बार, हमें ऑनर या लॉर्डशिप या लेडीशिप के रूप में संबोधित किया जाता है. यह बहुत गंभीर खतरा है जब लोग कहते हैं कि अदालत न्याय का मंदिर है. खतरा यह है कि हम खुद को उनमें देवता मानते हैं.”
कोलकाता : भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को यह बयान दिया कि न्यायालय को न्याय का मंदिर मानना और न्यायाधीशों को भगवान के समान समझना “गंभीर खतरा है”,चूँकि न्यायाधीशों का कार्य जनहित की सेवा करना है.
कोलकाता में समकालीन न्यायिक विकास पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि संवैधानिक नैतिकता किसी संस्था की न्यायालय प्रणाली के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है.
खतरा यह है कि हम खुद को उनमें देवता मानते हैं
चंद्रचूड़ ने कहा, “बहुत बार, हमें ऑनर या लॉर्डशिप या लेडीशिप के रूप में संबोधित किया जाता है. यह बहुत गंभीर खतरा है जब लोग कहते हैं कि अदालत न्याय का मंदिर है. खतरा यह है कि हम खुद को उनमें देवता मानते हैं.”
सीजेआई ने कहा कि “जब उन्हें बताया जाता है कि अदालत न्याय का मंदिर है तो उन्हें झिझक महसूस होती है क्योंकि मंदिर मानता है कि न्यायाधीश देवता की स्थिति में हैं.”
सीजेआई ने कहा, “मैं लोगों के सर्वर के रूप में न्यायाधीश की भूमिका को फिर से बनाना चाहूंगा और जब आप खुद को ऐसे लोगों के रूप में मानते हैं जो दूसरों की सेवा करने के लिए हैं, तो आप करुणा, सहानुभूति, न्याय करने की धारणा लाते हैं लेकिन इसके बारे में निर्णय लेने की नहीं.”