एक बेरा के बात आए मैं ह मोर महतारी संग अपन पुरखौती गाँव जावत रेहेंव, रद्दा म दाई संग गोठियावत जाए के मोर आदत हे, दूनो महतारी बेटा ठउर तक हबरत ले आने-आने बिसय चाहे बर-बिहाव, घर-परिवार या मोर अपन बारे म गोठ हो, कभू कभू त धरम के बारे म घलो चर्चा हो जाथे।
एक पइत अचानक मोर महतारी मोला कहिंन तैं तो हमर घर के पंडित हस तर्क म, फेर बेटा कभू-कभू अपन तर्क ल छोड़ के सामने वाला के गोठ के घलो मान रखना चाही। मैं कहेंव दाई तैं तो जानथस की मैं भगवान के रोज पुजा करथंव,मंदिर घलो जाथव फेर आजकल के मनखे ल देखथंव धरम के नाव म टोटका अउ एक-दूसर के देखा- सिखी, ए ह मोला एको नइ सुहावय। दाई कहिन, बेटा तोर इच्छा के पूर्ति ह दू हाथ जोरे ले हो जथे अउ कोनो ह किसम-किसम उदीम करथे। मैं कहेंव तोर गोठ सोलह आना हे दाई फेर लोगन मन कहिथे की फलाना के आए ले धरम अउ बाढ़िस, ढेकाना के आए ले सब मंदिर जाए ल लगिस फेर मोर प्रश्न हे, का हमन अपन भगवान ल नइ जानन? एमा गलती काकर हे? दाई ददा के, या घर के सियान मन के? जेन मन हमन ला हमर भगवान के बारे में या मंदिर जाये बर नइ बताइन या उंखर गलती हे जेन बाबा मन के आए ले मंदिर जाथे?
हमर छत्तीसगढ़ म अधिकतर तीज तिहार म भोलेबाबा ला सुमरथन ओकर पूजा पाठ करत आवत हन, चाहे तीजा के तिहार हो, इशर राजा गउरा रानी के बिहाव हो या कमरछठ के तिहार हो प्रायः ए सब तिहार म हमन भोलेबाबा के पूजा पयलगी करथन। हमर छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़िया भाई बहिनी मन के आने-आने सगा मन म अपन कुल देवता के रूप म भोलेबाबा ल मानथे,कोनो ह ओला दूल्हा देव कथे,कोनो हा बूढ़ादेव फेर भगवान तो एकेच आए।
मोर महतारी कहे लागिन तैं घूम फिर के जुन्ना गोठ म आ जाथस रे टूरा,मैं कहेंव दाई रुखवा के जर जब कमजोर हो जाथे ता रुख हा ज्यादा दिन नइ जिए अउ आजकल के मनखे तो इच्छा पूरा नइ होए ता बाबा के संगे-संग भगवान् ला घलो बदल डारथे|अब देख न दाई पहली आसाराम बापू रिहिन ता सब “हरि ॐ” कहे अउ बिसनु भगवान ला सुमरे फेर निर्मल बाबा आइस ता सब ला समोसा खाए बर,इमली चटनी म किरपा अटके हे कहे ता का सहीं म अमली के चटनी म किरपा अटक जाथे वो! आजकल के मनखे अपन कुल देवता, अपन आराध्य देव ला ही नइ जाने,ना ही ओकर मान-गउन करे। एमा गलती बाबा मन के नहीं,गलती हे हमर सियान मन के,एमा गलती हे वो जम्मों मनखे के जेन हा भगवान ल अपन फायदा ,अपन सुवारथ बर मानथे।
तैं चुप रहा रे टूरा कइसन तर्क करथस रे! फायदा होवय या झन होवय भक्ति भाव म रहे ले मन म शांति रहिथे अउ तोर मनोकामना तो पूरा करत हे न भगवान हा ता “पर के संसो” छोड़ अउ अपन रद्दा रेंग।
सरधा-बिस्वास के आरती,त मन म बसे भगवान।
सुआरथ ले जे भगति करे, तेला ढोंगी-जोगी जान।।
लिखइया :- नागेश वर्मा
पता – टिकरापारा रायपुर