ब्लैक फंगस के इलाज के लिए अब दुनियाभर में इस्तेमाल होगा हमारे एम्स का तरीका
कोरोना काल में रायपुर के एम्स में नए तरीके से किए गए ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) के इलाज का लोहा भारत सरकार ने ही नहीं दुनिया के नामी चिकित्सा संस्थानों ने माना है। ब्लैक फंगस पर दुनियाभर में हुई रिसर्च और इलाज के आधार पर माना जाता था कि संक्रमित होने वाले मरीजों में से केवल चार या पांच फीसदी ही ठीक होकर सामान्य स्थिति में आ पाते हैं। एम्स ने इलाज के तरीके में व्यापक बदलाव किए और ठीक होने वाले मरीजों के प्रतिशत को 45 फीसदी तक पहुंचा दिया। इसेवैज्ञानिक रूप से साबित करना इतना आसान नहीं था। इलाज के तरीके की प्रामाणिकता को साबित करने एम्स रायपुर ने दस से ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित किए। अब जाकर एम्स की उपचार विधि को भारत शासन के कॉपीराइट विभाग से अरोड़ा-नागरकर क्लासिफिकेशन का कॉपीराइट अधिकार मिला है। एम्स में ईएनटी विभाग के प्रो. रिपुदमन अरोड़ा ने बताया कि अब तक ब्लैक फंगस पर एम्स में किए गये इलाज का पैटर्न दुनियाभर के चिकित्सकों के लिए गाइडलाइन की तरह काम करेगा। इस पूरी प्रक्रिया में एम्स के तत्कालीन डायरेक्ट डॉ. नितिन एम नागरकर की भी अहम भूमिका थी। कोरोना के पहले तक छत्तीसगढ़ में कोरोना के पहले तक छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस का नामोनिशान नहीं था। बीमारी कोविड-19 महामारी के दौरान मरीजों को दिये गये अत्यधिक स्टेरॉयड के दुष्परिणाम के कारण उपजी।
ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. अरोड़ा ने बताया कि इस वर्गीकरण की मदद से ईएनटी चिकित्सक ब्लैक फंगस के प्रकार, उपचार और संभावित परिणामों के बारे में पूर्वानुमान लगा सकेंगे। इससे रोगियों के उपचार प्रबंधन और उनके शीघ्र ठीक होने में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा संख्या में रोगियों के डेटा से कई अनुसंधान के बाद यह कॉपीराइट प्राप्त किया गया है। इसके लिए चार महीने पहले प्रक्रिया को चालू किया गया था।