सबो मनखे परानी के जिनगी के रद्दा म कुछु अरचन तो आत रहिथें अउ एकरे नांव जिनगी आय। जिनगी के उतार-चढाव म,दुख-पीरा म, हांसी-उदासी म हमन ल कोनो के संग तो चाही होथे।
संगी-संगवारी होना जिनगी के वो दवई हरय, जेन हर पीरा ल बिसारे के ताकत राखथे। हमर छत्तीसगढ़ के मितानी परंपरा तो अइसन हे की मरे के बाद घलो मितान के भेंट सरग म होथे, कहे जाथे। हमर इहाँ मितान, गंगाजल, भोजली, तुलसीदल, रइनी, जवाँरा, गजामुंग, महापरसाद आदि ले मित-मितानी के परपंरा हे। कभु-कभु संगवारी मन अइसन बुता कर देथे, जेन समझ के परे रहिथे अब ए मोर बर कोनो नवा बात नोहय, फेर हर बछर मोर दू बार जनमदिन मोर संगी मन मना देथे। मोर नाव हे नागेश अउ मोर जनमदिन 1 जुन को आथे, ए दिन बड़ सुग्घर ढंग ले घर-परिवार के मन,संगी मन मोर दिन ल बिसेस अउ सुग्घर बना देथे।
सावन बड़ पबरित महीना हे। सावन के अंजोरी पाख पंचमी के दिन नागपंचमी ल सबो डाहर मनाए जाथे। नंदावत परपंरा म ए दिन के बिसेस खेल अखाड़ा अउ कुश्ती के आयोजन करे जावत रिहिस। कुछ कुछ जगह म आज घलो एकर आयोजन करथे, मोर जानती म हमर रइपुर म बइठे पटेल पारा पुरानी बस्ती के दंतेश्वरी मंदिर के आघु एकर आयोजन हर बछर नागपंचमी के दिन करे जाथे।
मोर नाव ‘नागेश (नाग+ईश)’ के मतलब होथे “सबो प्रकार के सांप मन के स्वामी”। असल संगवारी उही होथे जेन रोवत ल हसवा डारे, खराब दिन ल सुग्घर बना दे। वइसने नागपंचमी के दिन पुरा नियोजित ढंग ले संगी मन सोशल मिडिया म जन्मदिन के बधाई के संदेश बगरा देथे। अपन लेख के माध्यम ले 22 हजार ले ज्यादा नवा सोशल मिडिया संगवारी मोर संग जुड़े हे जेन मन संदेश भेज के,काल करके आज मोला बधाई पठोवत हे, एकर कारन आज पुरा दिन व्यस्त होगेंव, कतको झन अइसन जेन सहीं दिन म बधाई नइ दीन, तेनमन आज बधाई पठोइस। सिरतोन संगवारी मन गरब करे के लइक हे जेन हर बछर दू दिन मोर जनमदिन के आरो देवाथे। जिनगी म अइसन संगी रहय त हर दिन जनमदिन कस जनाथे अऊ मन म उच्छाह-उमंग उमड़त रहिथे।
लहु के रिश्ता ले बढ़के जे रिश्ता,
उही ल मीत-मितानी कहिथें।
जिनगी के ऊंच नीच,हांसी-उदासी म,
संग संगी-संगवारी रहिथे।।