झारखंड की राजनीति के जानकार झारखंड मुक्ति मोर्चा के इस कदम को अच्छा नहीं मान रहे हैं. उनको लगता है कि अगर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की बनाए रखते हुए जेएमएम चुनाव लड़ता और हेमंत सोरेन चुनाव प्रचार की कमान संभालते तो उसे इसका फायदा मिलता!
नई दिल्ली जमानत पर जेल से बाहर आकर हेमंत सोरेन ने एक बार फिर झारखंड के सीएम पद की शपथ ले ली है. उन्होंने गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. महागठबंधन के विधायक दल ने बुधवार को उनको अपना नेता चुना था. हेमंत के नेता चुने जाने के बाद चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. झारखंड का यह राजनीतिक घटनाक्रम इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद से ही उनके फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चाएं तेज हो गई थीं.जेल से बाहर आकर हेमंत सोरेन ने कहा था,”आज मैं फिर अपने राज्य की जनता के बीच हूं. जो संकल्प हमने लिया है उसे हम मकाम तक ले जाने का काम करेंगे.आज मुझे लगता है कि ये पूरे देश के लिए एक संदेश है, किस तरह से हमारे खिलाफ षड्यंत्र रचा गया.कोर्ट का आदेश आपको देखने को मिलेगा. किन बातों को उजागर किया गया है, वो भी देखने को मिलेगा. जो भी न्यायालय का आदेश है, उसका आप अच्छे से आकलन करें.”
हेमंत के सीएम बनने का फायदा या नुकसान
हालांकि झारखंड की राजनीति के जानकार झारखंड मुक्ति मोर्चा के इस कदम को अच्छा नहीं मान रहे हैं. उनको लगता है कि अगर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की बनाए रखते हुए जेएमएम चुनाव लड़ता और हेमंत सोरेन चुनाव प्रचार की कमान संभालते तो उसे इसका फायदा मिलता.अगर फिर सरकार बनाने का मौका मिलता तो हेमंत सोरेन नए सिरे से मुख्यमंत्री बनते.इससे सोरेन परिवार पर सत्ता का भूखा होने का आरोप विपक्ष नहीं लगा पाता.
झारखंड की राजनीति पर बीजेपी की नजर है. असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि झारखंड में जेएमएम और कांग्रेस पार्टी की ओर से एक वरिष्ठ आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री पद से हटाना बेहद दुखद है.मुझे यकीन है कि झारखंड के लोग इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करेंगे और इसे दृढ़ता से खारिज करेंगे.वहीं बिहार सरकार में मंत्री और बीजेपी नेता नितिन नवीन ने कहा है कि हेमंत सोरेन कुर्सी और सत्ता के लिए बेचैन हैं.अभी हेमंत सोरेन जमानत पर हैं, लेकिन कुर्सी उन्हें इतनी प्यारी है कि वह तुरंत उस पर बैठने के लिए बेताब हैं.
कौन सा नैरेटिव सेट करना चाहती है बीजेपी
बीजेपी दरअसल परिवारवाद का नैरेटिव सेट करना चाहती है.वह जनता में अगर यह संदेश पहुंचाने में कामयाब हो गई कि हेमंत सोरेन सत्ता के भूखे हैं तो इसका महागठबंधन की संभावनाओं पर निगेटिव असर पड़ सकता है.चंपाई के इस्तीफे के बाद से ही बीजेपी इस नैरेटिव को सेट करने की कोशिश में लगी है.
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के साथ झारखंड में बीजेपी के चुनाव सहप्रभारी और असम के सीएम हेमंत विस्व सरमा.
जेएमएम ने बीजेपी के इन आरोपों पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम से उसके हौसले बुलंद हैं.हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन भी विधायक बन कर विधानसभा पहुंच गई हैं. इससे जेएमएम के चुनाव प्रचार को धार मिलेगी.कल्पना ने लोकसभा चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी. हेमंत के जेल में रहने के दौरान कल्पना ने जमकर रैलियां कीं और चुनाव प्रचार में पसीना बहाया.
क्या है हेमंत सोरेन की योजना
हूल दिवस (30 जून) को सिदो-कान्हो की जन्मस्थली भोगनाडीह में जेएमएम के नेताओं के जुटान में चुनावी उलगुलान किया गया.उस दिन हेमंत सोरेन ने झारखंड विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल कर फिर सरकार बनाने का दावा किया और अपनी योजनाएं सामने रखी थीं.
झामुमो ने लोकसभा चुनाव हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में ही लड़ा.प्रचार की कमान हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन ने संभाली. इस चुनाव में पार्टी ने अपना प्रदर्शन भी सुधारा है.चार जून को आए चुनाव नतीजों में झामुमो ने प्रदेश की 14 में से तीन सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं उसकी सहयोगी कांग्रेस प्रदेश में दो सीटें जीतने में कामयाब रही है. झामुमो ने प्रदेश में 14.60 फीसदी वोट हासिल किए हैं. वहीं कांग्रेस के हिस्से में 19.19 फीसदी वोट आए हैं. इससे पहले 2019 के चुनाव में केवल एक सीट ही जीत पाई थी. वहीं कांग्रेस को केवल एक ही सीट मिली थी.
बीजेपी कर रही है क्या तैयारी
बीजेपी भी झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए अभी से अपनी रणनीति बनाने का काम कर रही है. वह इस बार अपने बड़े आदिवासी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने पर विचार कर रही है.इनमें अर्जुन मुंडा, गीता कोडा, समीर उरांव, सुदर्शन जैसे नेता शामिल हैं.आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए अरुण उरांव को भी बीजेपी मैदान में उतार सकती है. दरअसल बीजेपी की योजना आदिवासियों के आरक्षित अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहती है.इस समय विधानसभा में बीजेपी के मात्र दो आदिवासी विधायक हैं.बीजेपी इस कमी को पूरा करने के लिए अपने बड़े नेताओं पर दांव लगाना चाहती है.
कब होगा झारखंड विधानसभा का चुनाव
झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं. विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी तक है. झारखंड विधानसभा के चुनाव महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ कराए जा सकते हैं. राज्य में 2019 का विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में पांच चरणों में कराया गया था. उस चुनाव में बीजेपी ने 25, जेएमएम ने 30, कांग्रेस ने 16, राजद ने 1सीट पर जीत दर्ज की थी.