पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा सरकार पर धान खरीदी नहीं करने के षड्यंत्र रचने के आरोप लगाए। उन्होंने धान खरीदी करने वाली समितियों के 13 हजार कर्मचारियों के हड़ताल पर होने और उनकी मांगों को सामने रखते हुए कहा कि जब मैं मुख्यमंत्री था, तब 2021 में भी कर्मचारियों ने यही मांग उठाई थी। तब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने इन मांगों का समर्थन करते हुए मुझे पत्र लिखा था। उनकी दो मांगें वही हैं जिसका उन्होंने समर्थन किया था। साय ने अपने पत्र में सूखत का प्रावधान कर कर्मचारियों के संविलियन की बात कही थी।
हड़ताली कर्मचारियों के समर्थन में साय ने 2021 में भूपेश को लिखा था पत्र खरीदी नहीं हुई तो कांग्रेस करेगी आंदोलन
राजधानी में चर्चा के दौरान पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने पूछा कि अब सरकार क्या कर रही है। धान उपार्जन की कांग्रेस सरकार की नीति को साय सरकार ने बदल दिया है। किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रुपए देने का वादा करके भाजपा पछता रही है और पहले की तरह किसानों को फिर ठगने की तैयारी है। अगर धान खरीदी नहीं हुई तो कांग्रेस किसानों के समर्थन में आंदोलन करेगी। नई नीति में 72 घंटे में बफर स्टॉक के उठाव की नीति में बदलाव से बफर स्टॉक के उठाव की कोई सीमा ही नहीं है। मार्कफेड द्वारा धान के निपटारे की 28 फरवरी तक की बाध्यता खत्म कर 31 मार्च करें दिया गया है। 31 जनवरी को धाने खरीदी बंद होने के बाद समितियों, संग्रहण केंद्रों में धान दो माह तक रखा रहेगा। सूखत से धान में कमी आने पर आर्थिक नुकसान के चलते समितियां भविष्य में खरीदी बंद कर देंगी। साय सरकार की नई नीति से स्पष्ट है कि वह किसानों का धान कम खरीदना चाहती है।
कर्मचारियों ने तीन प्रमुख मांगें रखी हैं: 1. सूखे हुए धान का प्रावधान। 2. प्रदेश की सभी समितियों को प्रबंधकीय अनुदान देने का मध्य प्रदेश जैसा प्रावधान, ताकि समय पर वेतन मिल सके। 3. सेवा नियम 2018 में संशोधन कर नया वेतनमान लागू करना। इस हड़ताल का कारण यह है कि धान खरीदी में इन समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और यदि उनकी मांगों पर सहमति नहीं बनी तो किसानों के लिए धान बेचने में समस्याएं आ सकती हैं। राज्यभर के लगभग 13,000 कर्मचारी इस हड़ताल में शामिल हैं और वे अपने मुद्दों को लेकर संघर्षरत हैं, ताकि सरकार जल्द से जल्द उनकी मांगों को पूरा करे