पड़ोसी देश बांग्लादेश इन दिनों हिंसा की आग में झुलस रहा है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन देशभर में उग्र रूप ले चुका है। इस हिंसक आंदोलन के चलते 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है। प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए राजधानी ढाका में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। वहीं देशभर के शिक्षण संस्थानों में ताला लग गया और छात्र अपने घर वापस चले गए हैं।
कहानी 1971 से शुरू होती है। ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली। एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इसी आरक्षण के विरोध में इस वक्त बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं।
यह विरोध पिछले महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। बीते सोमवार को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।
आरक्षण 1972 में दिया गया तो आंदोलन अभी क्यों हो रहा है?
1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। पिछले महीने उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
हालांकि, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी है।
सरकार बातचीत को तैयार, प्रदर्शनकारियों ने मना किया
सरकार ने गुरुवार को कहा कि वह प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करने को तैयार है। हालांकि प्रदर्शनकारियों ने बातचीत करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि बातचीत और गोलीबारी एकसाथ नहीं चल सकती।