नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी शंका जाहिर की। जदयू ने कहा कि यदि वह वक्फ बिल का समर्थन करती है तो उसे विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है और राज्य का मुस्लिम वोट एकमुश्त तौर पर राजद के साथ जा सकता है।
केंद्र सरकार ने वक्फ विधेयक को संसद में पेश तो किया लेकिन फिर 2 कारणों से उसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजना तय किया। इसकी वजह सिर्फ विपक्षी इंडिया गठबंधन के घटक दलों का तीव्र विरोध ही नहीं, बल्कि एनडीए की सहयोगी पार्टियों की चिंता भी थी। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी शंका जाहिर की।
जदयू ने कहा कि यदि वह वक्फ बिल का समर्थन करती है तो उसे विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है और राज्य का मुस्लिम वोट एकमुश्त तौर पर राजद के साथ जा सकता है। इसी तरह टीडीपी ने भी अपनी शंका बीजेपी के सामने रखी। अपने इन दोनों सहयोगियों का नुकसान न होने देने के लिहाज से बीजेपी ने मध्यम मार्ग अपनाया और जदयू के अनेक सांसद और विधायक मानते हैं कि बिल को समर्थन देने से बिहार में मुस्लिम वोटों के प्रभाव वाले चुनाव क्षेत्र बड़ी तादाद में होने से जदयू को नुकसान उठाना पड़ेगा और इसका लाभ समिति (जेपीसी) लालू यादव की पार्टी राजद को होगा।
आश्वस्त किया कि यह वक्फ विधेयक को सर्वदलीय संयुक्त संसदीय के पास भेजेगी। ऐसा करने से जदयू और टीडीपी पर कोई सीधा आरोप नहीं आएगा। ये पार्टियां मुस्लिम समुदाय की नाराजगी से बचेंगी। इसके अलावा जेपीसी की रिपोर्ट भी जल्दी नहीं आएगी। इस दौरान बिहार विधानसभा चुनाव भी संपन्न हो जाएंगे। संयुक्त संसदीय समिति में सभी राजनीतिक पार्टियों के सदस्य शामिल होते हैं। ऐसे में कोई भी वक्फ बिल को सीधे तौर पर पारित कराने के लिए जदयू या टीडीपी को कठघरे में खड़ा नहीं कर पाएगा।
बीजेपी की इस कूटनीतिक दलील के बाद एनडीए की सभी सहयोगी पार्टियां इस विधेयक को अपना समर्थन देने के लिए तैयार हो गई। इसके बावजूद जदयू के अनेक सांसद और विधायक मानते हैं कि बिल को समर्थन देने से बिहार में मुस्लिम वोटों के प्रभाव वाले चुनाव क्षेत्र बड़ी तादाद में होने से जदयू को नुकसान उठाना पड़ेगा और इसका लाभ लालू यादव की पार्टी राजद को होगा।
जदयू बिहार की जनता को यह समझा पाने में असमर्थ होगी कि उसने इस विधेयक का समर्थन क्यों किया था। अपने सहयोगियों को साधने और एनडीए को एकजुट रखने की खातिर सरकार इस विधेयक को विस्तृत समीक्षा के लिए जेपीसी के पास तो भेज देगी लेकिन इस प्रक्रिया से विधेयक काफी समय के लिए लटक जाएगा। जेपीसी अपनी कई बैठकों में सहमति व असहमति के बिंदुओं पर विस्तृत विचार करने के बाद निर्णय लेती है। उसे सदस्यों की आपत्तियों, सुझावों व दलीलों को भी सुनना और दर्ज करना होता है। इसके बाद काफी विलंब से जेपीसी की सिफारिशें आती हैं।
सिफारिश मिलने के बाद सरकार विधेयक को चर्चा के लिए लोकसभा में पेश करती है। इस दौरान सरकार को उम्मीद है कि द्विवार्षिक चुनावों से राज्यसभा में भी उसका बहुमत हो जाएगा और तब यह बिल संसद में पारित कराना उसके लिए आसान हो जाएगा। देश में कुल वक्फ संपत्तियों 3,56,047 हैं। इन पर 191207 कोर्ट केस हैं। विपक्षी गठबंधन ने इस बिल को संविधान और मुस्लिमों पर हमला बताया है।