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रूप कंवर सती कांड के आरोपी बरी तो हो गए, लेकिन ये दर्दनाक कहानी आप पढ़ नहीं पाएंगे!

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Roop Kanwar Sati: कई लोगों पर सती प्रथा के महिमामंडन का आरोप लगा. सवाल ये भी उठा कि क्या लड़की अपनी मर्जी से सती हुई थी. आलोचनाओं और दबाव के बाद मामला दर्ज हुआ था. अब जयपुर की सती निवारण विशेष अदालत ने 8 लोगों को बरी कर दिया है!

रूप कंवर जब जिंदा जली तो गांव में इसका उत्सव मनाया गया. माल सिंह की मौत के बाद ही ये खबर फैल गई थी कंवर सती होने वाली है. इसके बाद साधु-संत ये देखने वहां पहुंचे थे कि क्या उनके अंदर कोई देवी है? 15 अक्टूबर, 1987 को इंडिया टुडे से जुड़े इंद्रजीत बधवार ने इसे ग्राउंड से रिपोर्ट किया था. उन्होंने लिखा कि रूप कंवर के ससुराल वालों ने आशीर्वाद देकर उसे आगे बढ़ाया. कंवर को शादी की पोशाक पहनाई गई और फिर हाथ में नारियल लेकर कंवर से गांव का दौरा करवाया गया. “जल्दी करो, पुलिस आ जाएगी…”

‘राजपूत श्मशान घाट’ पर सैकड़ों लोग पहले से ही जमा हो गए थे. गांव वालों ने बताया था कि उसने 15 मिनट तक चिता की परिक्रमा की. घटनास्थल पर मौजूद तेज सिंह शेखावत ने बताया था कि जब कंवर काफी देर तक परिक्रमा करती रही तो वहां मौजूद लोगों ने कहा, “जल्दी करो, पुलिस आ सकती है”. इसके बाद कंवर को चिता पर बिठा दिया गया. कंवर के मृत पति का सिर उसकी गोद में था.

चिता से गिरी तो फिर से चढ़ाया

माल सिंह के छोटे भाई पुष्पेंद्र सिंह की उम्र तब 15 साल थी. उसने बताया कि उसने चिता को आग लगाई थी लेकिन आग लगी नहीं. उसने कहा कि आग अपने आप लग गई थी. एक ग्रामीण ने इंद्रजीत बधवार को बताया कि जलने के दौरान रूप कंवर चिता से गिर गई थी. उसके पैर झुलस गए थे. इसके बाद दर्द से चीखती कंवर को वापस से चिता पर चढ़ा दिया गया. इस बीच, गांव के राजपूत इलाके के लगभग हर घर से घी की बाल्टी लाई गई. और धुंआ उगलती लकड़ियों पर तब तक घी डाला गया, जब तक कि उनमें आग नहीं लग गई. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में इसे ऐसे लिखा गया- 

उस दिन दोपहर 1.30 बजे तक सब कुछ खत्म हो गया. 70 साल बाद गांव में दूसरी सफल ‘सती’

गांव के लोगों ने कंवर को सती देवी का रूप दे दिया और मंदिर बनवा दिया. वहां एक बड़ा ‘चुनरी महोत्सव’ भी किया गया. चुनरी महोत्सव

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजपूत समाज के लोगों ने 16 सितंबर 1987 को गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी. बहुत ही कम समय में चारो ओर इसकी चर्चा होने लगी. कई संगठन ने इस महोत्सव का विरोध किया. सोशल वर्कर्स और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तब के मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को चिट्ठी लिखी. इसके बाद 15 सितंबर को जस्टिस वर्मा ने इस चिट्ठी को जनहित याचिका माना. और समारोह पर रोक लगा दी. उन्होने माना कि ये सती प्रथा का महिमामंडन है. उन्होंने सरकार को आदेश दिया कि किसी भी हाल में ये समारोह नहीं होना चाहिए.हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया

हालांकि, इस रोक के बावजूद 15 सितंबर की रात से ही लोग वहां जमा होने लगे. कहा जाता है कि 10 हजार की जनसंख्या वाले उस गांव में 1 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे. इस दौरान पुलिस गांव से दूर ही रही. एक दिन बाद ही लोगों ने हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए महोत्सव मना लिया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसमें कई दलों के विधायक भी शामिल हुए थे.

एक साल बाद इस घटना की बरसी भी मनाई गई. 22 सितंबर, 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जुलूस निकाला. पुलिस ने कहा कि लोगों ने ट्रक में सवार होकर रूप कंवर के जयकारे लगाए. उन्होंने ट्रक पर कंवर की फोटो लगा रखी थी. सती मामलों की जल्दी सुनावई के लिए जयपुर में स्पेशल कोर्ट बनाई गई. इससे पहले कोर्ट ने  31 जनवरी, 2004 को मामले के 25 आरोपियों को बरी कर दिया था.

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Janmat News

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