नई दिल्ली। एजेंसी। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन लोकुर ने बृहस्पतिवार को कहा कि संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ मौन रहने का अधिकार भी दिया गया है, जिसका प्रयोग व्यक्ति गिरफ्तार होने पर कर सकता है। न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि सभी मौलिक अधिकार आपस में जुड़े हुए हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान में मौन रहने का अधिकार दिया गया है, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति गिरफ्तारी या हिरासत की स्थिति में पुलिस के सवालों का जवाब देने से इनकार कर सकता है। शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने टिप्पणी की, एक बात जो मैं कहना चाहूंगा वह यह है कि हर किसी को मौन रहने का मौलिक अधिकार है। यह ऐसा अधिकार है जिसका प्रयोग हिरासत में लिए गए व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा, संविधान कहता है कि आपको मौन रहने का अधिकार है, जिसका मतलब है कि अगर पुलिस आपसे कोई सवाल पूछे, तो आप कह सकते हैं मैं जवाब नहीं दूंगा….
ऐसी स्थिति में क्या होगा? ऐसा कभी-कभी होता है। पुलिस अदालत को बताती है कि आरोपी सहयोग नहीं कर रहा है और इसलिए उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, लेकिन मेरे विचार में यह संविधान के अनुच्छेद 20 का स्पष्ट उल्लंघन है, जहां आपको मौन रहने का अधिकार है। न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि हाल के दिनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विभिन्न तरीकों से अंकुश लगाया जा रहा है, जिसमें असहमति व्यक्त करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी या हिरासत, उसके आसपास के लोगों के खिलाफ कार्रवाई, मीडिया को विज्ञापन देने से मना करना, पोस्ट हटाने के लिए सोशल मीडिया मंच का उपयोग करना और मानहानि कानून का उपयोग करना शामिल है।