इस दिन लोग बकरे की बलि देते हैं, जिस वजह से ईद उल अजहा को बकरीद भी कहा जाता है। इस साल बकरीद ईद 17 जून को मनाई जा रही है।
ईद-अल-अज़हा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार हजरत इब्राहिम (अब्राहम) द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देने की इच्छा की याद में मनाया जाता है। भारत में, ईद-अल-अज़हा की तारीख इस्लामी चंद्र कैलेंडर, ज़ु अल-हज्जा के 10वें दिन पर निर्भर करती है।
क्यों दी जाती है कुर्बानी ?
यह त्योहार पैगंबर इब्राहिम (अब्राहिम) की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम को नींद में आए एक सपने में अल्लाह ने अपने किसी सबसे प्रिय चीज को कुर्बान करने को कहा। इसके बाद पैगंबर इब्राहिम बहुत सोच में पड़ गए आखिर क्या कुर्बान किया जा सकता है? बहुत सोचने विचारने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि उनके लिए सबसे प्रिय उनका बेटा है। ऐसे में अब उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का मन बना लिया। जब अपने बेटे को कुर्बानी के लिए लेकर जा रहे थे तो उनके रास्ते में एक शैतान मिला जो बोला कि आप अपने बेटे का बली क्यों दे रहे हैं। अगर आपको देना ही है तो किसी जानवर की बली दे दीजिए। इस बात पर पैगंबर इब्राहिम ने बहुत देर तक सोचा और फिर इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर मैं अपने बेटे की बजाय किसी और का कुर्बानी देता हूं तो ये अल्लाह के साथ धोखा करना होगा। इसलिए उन्होंने बेटे को ही कुर्बान करने का निर्णय लिया। जब बेटे की कुर्बानी देने की बारी आई तो उनके पिता होने का मोह उन्हें परेशान करने लगा। इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधकर उसके बाद अपने बेटे की कुर्बानी दी। मगर हैरान करने वाली बात ये थी की जब उन्होंने अपनी आंखों से कपड़े की पट्टी हटाई तो देखा की उनका बेटा सही सलामत खड़ा है और बेटे की जगह पर किसी बकरे की कुर्बानी हो गई है। इसी घटना के बाद से मुस्लिम समुदाय में बकरा कुर्बान करने का चलन शुरू हो गया।
लखनऊ के दुबग्गा इलाके में स्थित में कुर्बानी के लिए बकरों की खरीददारी तेज हो गई है। इस बीच यहां 10 लाख 786 रुपए का बकरा बिकने के लिए आया है। खास बात ये है कि इसके पेट पर मोहम्मद लिखा है। वहीं ये घर में शोफे पर बैठता है।