चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार का जवाब नहीं मिल जाता, तब तक इस कानून के खिलाफ इन याचिकाओं पर सुनवाई भी नहीं होगी!
सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कहा है कि जब तक इस मामले की सुनवाई नहीं हो जाती है तब तक मस्जिद या मंदिर को लेकर कोई केस फाइल नहीं किया जाएगा. कोई भी कोर्ट किसी लंबित मामले पर फैसला नहीं सुनाया जाएगा. 12 दिसंबर को एक अहम आदेश में कोर्ट ने निचली अदालतों को ये भी कहा कि वो किसी भी धार्मिक स्थलों को लेकर सर्वे का आदेश जारी नहीं करेंगी!.
CJI की बेंच ने आज क्या कहा?
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इन याचिकाओं पर जब तक केंद्र सरकार का जवाब नहीं मिल जाता, तब तक इन पर सुनवाई भी नहीं होगी. 1991 का ये कानून आजादी के समय (15 अगस्त,1947) मौजूद धार्मिक या पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है. इसी कानून के कई प्रावधानों को चुनौती देते हुए कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं!
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 6 याचिकाएं दायर की गई हैं. इनमें पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिकाएं भी हैं.
चीफ जस्टिस (CJI) संजीव खन्ना जस्टिस पी.वी. संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच याचिकाओं पर विचार कर रही थी. कोर्ट को बताया गया कि फिलहाल देश में 10 मस्जिदों/दरगाहों के खिलाफ 18 याचिकाएं लंबित हैं. इस पर बेंच ने कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट इस तरह के मुकदमों और सूट को रोकता है, ऐसे में इस कानून की वैधानिकता पर फैसला होने तक कोई आदेश नहीं देना चाहिए.!
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?
ये कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को देश में धार्मिक स्थलों की जो स्थिति रही, वही स्थिति बरकरार रहेगी. कानून के तहत आजादी के समय के सभी धार्मिक स्थलों कवर किया गया था, सिवाय राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के. कानून की धारा-3 कहती है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय के किसी उपासना स्थल का किसी अलग धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल में परिवर्तन नहीं करेगा. इसका उल्लंघन करने पर 3 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
कानून की धारा-4(2) में ये कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में बदलाव से जुड़ा कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण के समक्ष लंबित है, वो समाप्त हो जाएगी. ये आगे निर्धारित करता है कि ऐसे मामलों पर कोई नई कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी.
ये कानून 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार लेकर आई थी. उस समय अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन अपने चरम पर था.
अब सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है और ये सुनवाई अलग-अलग अदालतों में दायर कई केस की पृष्ठभूमि में होगी. इनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से जुड़े केस शामिल हैं!