गणेश चतुर्थी की पूजाविधि,
द्रिक पंचांग के अनुसार गणेश पूजा का मुहूर्त 7 सितंबर को सुबह 11:03 बजे से शुरू होकर दोपहर 1:34 बजे तक है। चूंकि चतुर्थी तिथि 6 सितंबर को दोपहर 3:01 बजे शुरू होकर 7 सितंबर को शाम 5:37 बजे समाप्त होगी, इसलिए मूर्ति की स्थापना 11:03 बजे से 1:34 बजे तक की जाएगी। आज स्थापित किया जाएगा
गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो बाधाओं को दूर करने वाले और ज्ञान व समृद्धि के संरक्षक भगवान गणेश के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।.
गणेश चतुर्थी की पूजाविधि : उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करवाएं।
इसके बाद गणेशजी वस्त्र, इत्र, जनेऊ, फल, फूल, धूप-दीप, पान और नैवेद्य अर्पित करें।
गणेशजी को दूर्वा अतिप्रिय है। पूजा के दौरान उन्हें दूर्वा जरूर चढ़ाएं।
अब गणेशजी को मोदक, लड्डू या मखाना खीर का भोग लगा सकते हैं।
गणेशजी का विधिविधान से पूजन के एकदिन, पांच दिन अथवा दस दिन तक प्रतिमा स्थापित करें और प्रतिदिन विधि विधान से पूजन अर्चन कर विसर्जन करें। गणेश विसर्जन में केवल मिट्टी से निर्मित प्रतिमा स्थापित करें, ताकि नदी-तालाब प्रदूषित न हो।
गणेश चतुर्थी 2024 पूजा सामग्री लिस्ट : गणेश जी की मूर्ति, कुमकुम, दूर्वा, अक्षत, लाल वस्त्र, मौली, रोली, लौंग, इलायची, सुपारी, पान, पंचमेवा, सिन्दूर, जनेऊ जोड़ा, गाय का घी, शक्कर, फल, गंगा जल, फूल माला, गुलाब जल, इत्र, धूप बत्ती, सिक्का, नारियल, शहद, दही. गुलाल, अष्टगंध, हल्दी, गाय का दूध, मोदक, गुड़, कलश, धूप-दीपक समेत सभी पूजा सामग्री एकत्रित कर लें।
गणेश जी के मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विघ्नशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
गजराजमुखाय ते नमो मृगराजोत्तमवाहनाय ते ।
द्विजराजकलाभृते नमो गणराजाय सदा नमोऽस्तु ते ॥
गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते ।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥
अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने और समाज को संगठित करने के लिए अनूठे तरीके अपनाए. विघ्ननाशक आराध्य श्री गणेश के पूजन को उन्होंने घरों की चहारदीवारी से बाहर निकालकर सार्वजनिक उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया. तिलक ने यह तब किया जब अंग्रेजी हुकूमत ने सार्वजनिक तौर पर ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन पर रोक लगा रखी थी
तिलक ने 20 अक्तूबर, 1893 को पुणे के अपने निवास स्थल केसरीबाड़ा में पहला सार्वजनिक गणेशोत्सव आयोजित किया. इसके कार्यक्रम दस दिन तक चले. इतिहासकारों के अनुसार, शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई ने ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी. बाद में पेशवाओं ने इसका विस्तार किया. लेकिन तिलक के गणेशोत्सव के आयोजन धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित नहीं रहे. उन्होंने गजानन को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के तौर पर स्थापित किया. इस उत्सव के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए सामाजिक कुरीतियों और छुआछूत दूर करने के प्रभावी संदेश दिए गए. सामाजिक एकता और राष्ट्रीय भावना का विकास इन आयोजनों के मूल में था.