प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे में गंगाजल में फिकल कॉलीफॉर्म यानि अपशिष्ट की मात्रा अधिक पाई गई है। इसके बाद बोर्ड ने आम लोगों को आचमन नहीं करने की हिदायत दी है।
हरिद्वार: करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र मां गंगा का पानी हरिद्वार में आचमन करने लायक भी नहीं है. ये दावा किसी और का नहीं, बल्कि हर महीने गंगा के पानी की गुणवत्ता को लेकर जांच करने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया है. गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर महीने की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है. हालांकि रिपोर्ट में एक बात ये अच्छी कही गई है कि गंगा का पानी पीने लायक भले ही न हो, लेकिन स्नान करने लायक जरूर है.
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अंग है। किसी भी चीज की शुद्धता और पवित्रता के लिए पहले गंगा का नाम लिया जाता था लेकिन अब यह हैरान करने वाली बात है कि धर्म नगरी में ही गंगा मैली हो रही है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी के अनुसार उन्होंने हरिद्वार के ऊपर और नीचे यानी यूपी बॉर्डर तक करीब आठ जगहों पर गंगा के पानी की हर महीने जांच करती है. जांच का डाटा देखा तो एक बात साफ होती है कि हरिद्वार में गंगा के पानी की क्वालिटी B क्लास की है. क्योंकि हरिद्वार में घुलनशील अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और घुलनशील ऑक्सीजन (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक से अधिक मिला है. नहाने योग्य नदी जल के लिए ऑक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है.