ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई है. इब्राहिम रईसी की मौत में अमेरिका कनेक्शन सामने आया है. रईसी की मौत में अमेरिका भले ही सीधे तौर पर जिम्मेदार न हो, मगर यह हादसा उसकी वजह से जरूर हुआ है. जो कड़ियां सामने आई हैं, उससे यह स्पष्ट है कि इब्राहिम रईसी कैसे अमेरिकी प्रतिबंधों की भेंट चढ़ गए. जिस हेलिकॉप्टर क्रेश में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी थे, वह आउटडेटेड और बेसिक चॉपर था. चूंकि ईरान पर अमेरिका ने दशकों से प्रतिबंध लगा रखा है, ऐसे में उसके पास लेटेस्ट तकनीक से लैस विमान और चॉपर्स नहीं हैं. यही वजह है कि रईसी को आउटडेटेड हेलिकॉप्टर में सवार होना पड़ा, जिसका निर्माण दशकों पहले बंद हो चुका है.
दरअसल, 1979 की क्रांति के बाद से ईरान पर प्रतिबंधों की मार पड़ी. इन प्रतिबंधों ने ईरान को बड़े पैमाने पर अमेरिका या यूरोपीय सप्लायर्स से नए विमान या एयरक्राफ्ट कंपोनेंट को खरीदने से रोक दिया. इसकी वजह से ईरान के मिलिट्री और सिविलियन दोनों ऑपरेटरों को अमेरिकी एयरक्राफ्ट कंपनी बोइंग कंपनी और यूरोपीय एयरक्राफ्ट कंपनी एयरबस एसई से विमान खरीद पर बैन है. और इसलिए पिछले कुछ दशकों से ईरान को पुराने और किसी तरह काम चलाने वाले एयरक्राफ्ट-हेलिकॉप्टर पर निर्भर रहना पड़ा है.
ईरान के राष्ट्रपित इब्राहिम रईसी की मौत पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। प्लेन क्रैश होने के चलते उनके साथ ईरान के विदेश मंत्री और अन्य अधिकारी मारे गए। रईसी का प्लेन हादसे का शिकार हुआ, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि साजिश के तहत उनके प्लेन को क्रैश कराया गया। रईसी का पूरा जीवन विवादों से घिरा रहा है, लेकिन हमेशा ही उन्होंने अडिग रहकर एक मिशाल पेश की। उनके फैसले सही हों या गलत। वह हमेशा उन पर अडिग रहे और एक नेता के रूप में डटकर मुश्किल हालातों का सामना किया।
1998 में तेहरान में हुए नरसंहार में भूमिका होने के चलते रईसी को तेहरान का कसाई भी कहा गया, लेकिन इसके बाद भी वह अपनी नीतियों पर अडिग रहे और राष्ट्रपति बनने के तके बाद भी विवादों ने उनका दामन नहीं छोड़ा। उन्होंने यूरेनियम और हथियार के मामलों में अहम योगदान देने के साथ ही इजराइल के साथ संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कौन थे इब्राहिम रईसी
धर्मगुरू के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले रईसी हमेशा ही एक नेता से ज्यादा इस्लामिक धर्मगुरू के गुण रखते थे। कुरान को चुमने से लेकर अमेरिका और पूरी दुनिया के साथ संवाद में भी रईसी के धर्मगुरू होने की झलक दिखती थी। वह ईरान की अदालत का संचालन कर चुके थे और 2017 में राष्ट्रपति का चुनाव हारे थे। राष्ट्रपति बनने के बाद जब भी मध्य पूर्व में विवाद हुए तब रईसी मजबूती के साथ डटे रहे और उनका सामना किया। जब इजराइल ने तेहरान में हमला करने की बात कही तब भी वह अडिग रहे और उनके फैसले की जमकर तारीफ हुई।
कठोर फैसले लेने की ताकत
रईसी के अंदर कठोर फैसले लेने की क्षमता थी और यह उनके पूरे कार्यकाल के दौरान दिखा। बुर्का विरोध के दौरान पूरे देश में अस्थिरता फैली हुई थी। बाहरी देशों का दबाव था। अमेरिका और पश्चिम की कई बड़ी ताकतें कानून बदलने की बात कह रही थीं, लेकिन रईसी अपने फैसले पर अडिग रहे। यही दृढ़ता उन्होंने ईजराइल के खिलाफ हाल ही में दिखाई थी। सीरीया के डेमैस्कस में ईरान दूतावास में हमला हुआ था, जिसमें ईरान के कई नजरल मारे गए थे। आशंका जताई गई की यह हमला इजराइल ने किया था। इसका बदला लेने के लिए रईसी ने तेल अवीव पर हमला किया और 300 से ज्यादा मिसाइल ड्रोन दागे। इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आ गई, जबकि पहले ही दोनों देश कई वर्षों से लड़ते आ रहे हैं।
बुर्का विरोध से कैसे निपटे ?
साल 2022 में महसा अमीनी नाम की एक महिला की मौत के बाद ईरान में मजकर बवाल हुआ। 22 साल की इस युवती को ईरान की मोरल पुलिस ने बुर्का न पहनने के कारण गिरफ्तार किया था और पुलिस हिरासत में रहने के दौरान उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद पूरे देश में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन होते रहे। अमेरिका सहित कई बड़े देशों ने ईरान पर बुर्का न पहनने की छूट देने के लिए दबाव बनाया, लेकिन रईसी ने पूरी मजबूती के साथ इस्लाम के नियमों का पालन किया और नियमों में कोई बदलाव नहीं किया।
बुर्का के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में 500 से ज्यादा मौतें हुईं, जिसमें 71 नाबालिग भी शामिल थे। सैकड़ों लोग घायल हुए और हजारों को बंधक बनाया गया। मालवाधिकार संस्थाओं के अनुसार ईरान ने इस मामले में सात लोगों को फांसी भी दी। प्रदर्शन के दौरान कई पत्रकार, वकील, सवाजसेवी, छात्र, शिक्षक, कलाकार, नेता, अल्पसंख्यक और प्रदर्शनकारियों के रिश्तेदारों को जान गंवानी पड़ी। कई लोग गिरफ्तार हुए, उन्हें धमकाया गया और नौकरी से निकाल दिया गया।
हमसा अमीनी की मौत के बाद पश्चिमी देशों ने ईरान पर दबाव बनाया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमीनी ने बड़ा आंदोलन खड़ा करने में अहम योगदान दिया है। इसके जवाब में ईरान ने कहा कि मानव अधिकार को लेकर पश्चिमी देशों का रवैया दोहरा और झूठा है। ईरान की तरफ से कहा गया कि ईस्लाम के नियमों को लेकर गलतफहमी के चलते उनका विरोध किया जा रहा है।