बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को पुणे पोर्श दुर्घटना मामले में नाबालिग आरोपी को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया। यह फैसला उसकी दिल्ली में रहने वाली मौसी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई!
मुंबई : पुणे के पोर्शे कार हादसे में नाबालिग आरोपी की मौसी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में नाबालिग की रिहाई की मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि अवैध और मनमाने तरीके से नाबालिग को हिरासत में भेजा गया है। शुक्रवार को कोर्ट ने इस मामले में किसी प्रकार का अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार करते हुए याचिका पर 20 जून को सुनवाई रखी है। याचिका के मुताबिक, किशोर न्याय कानून के प्रावधानों के तहत नाबालिग को हिरासत में रखना नियमों के विपरीत है। ऐसे में, आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा की ज़रूरत है, ताकि उसे दुर्दांत अपराधी बनने से रोका जा सके। जेजे बोर्ड के मैजिस्ट्रेट की ओर से यह आदेश जारी किया गया है। लिहाजा इस मामले में न्याय के हित में कोर्ट का हस्तक्षेप ज़रूरी है।
मौसी ने याचिका में कहा कि उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन करते हुए उसके साथ व्यवहार किया जा रहा है।
सरकारी वकील ने क्या कहा
याचिका के अनुसार, इस मामले में नाबालिग और उसके परिवार को निशाना बनाया जा रहा है। इस मामले में निचली अदालत की ओर से दिया गया आदेश मीडिया रिपोर्ट की दबाव से प्रभावित है। वहीं, सरकारी वकील हितेन वेणेगांवकर ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि नाबालिग ऑब्जर्वेशन होम की लीगल कस्टडी में है। इसलिए मामले में अदालत का हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है।
मौसी की याचिका में क्या
मौसी की याचिका में कहा गया है, ‘…इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को चाहे जिस नजरिए से देखा जाए, यह एक दुर्घटना थी और जिस व्यक्ति के बारे में कहा गया है कि वह वाहन चला रहा था, वह नाबालिग था।’ उन्होंने कानून के साथ संघर्षरत बच्चे को पूरी तरह से गैरकानूनी और मनमानी हिरासत से तुरंत रिहा करने और मजिस्ट्रेट और सरकारी वकील हितेन वेनेगावकर ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विचारणीय नहीं है, क्योंकि नाबालिग को अदालत के आदेश के तहत हिरासत में रखा गया है। साथ ही, वह जेल में नहीं बल्कि एक निगरानी केंद्र में है और इसलिए, उसे तुरंत रिहा किए जाने का कोई सवाल ही नहीं है।
21 मई से हिरासत में नाबालिग
वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा ने उसकी तत्काल रिहाई के लिए तर्क दिया। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे ने कहा कि चूंकि नाबालिग 21 मई से ही निगरानी गृह में है, इसलिए अंतरिम आदेश पारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे 20 जून को याचिका पर विचार करेंगे।
19 मई को सुबह करीब 2.30 बजे कथित तौर पर नशे में धुत होकर अपनी पोर्शे कार तेज गति से चला रहा लड़का एक बाइक से टकरा गया, जिसमें दो आईटी इंजीनियरों की मौत हो गई। इस केस ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया।