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हसदेव की मिटती मुस्कान: क्या नक्सलवाद का एक और उभार हो रहा है ?

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  1. पर्यावरणीय बिगडन: खनन के कारण कई पुराने, बढ़ते पेड़ गिर गए हैं। इसका सबसे गंभीर प्रभाव वन की जैव विविधता पर पड़ा है।
  2. मनुष्यों और जानवरों के बीच संघर्ष के मामले बढ़ना: यह प्राकृतिक वन्यजीव आवास के विनाश का कारण भी

बन सकता है, जिससे इस क्षेत्र में मनुष्यों और जानवरों के बीच संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। वन्यजीवों पर तनाव पहले ही मानव जीवन, आजीविका, फसलों और संपत्तियों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा चुका है।

  1. व्यापक विस्थापन: खनन बड़े पैमाने पर गांवों के विस्थापन का कारण बन सकता है, विशेष रूप से आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासी जो पूरी तरह से वन पर निर्भर करते हैं न केवल अपनी आजीविका के लिए बल्कि उनके जीवन के सभी पहलुओं के लिए। वास्तव में, अधिकांश निवासी वन के बाहर जीवन को नहीं जानते और विस्थापित होने पर जीवित रहने में सक्षम नहीं होंगे।
  2. प्राकृतिक प्रवासन गलियारों पर प्रभाव इस वन के टुकड़े-टुकड़े होने से वन्यजीव गलियारों, जैसे हाथी गलियारा, पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। लगातार खनन इस क्षेत्र को हाथी आरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किए जाने में एक प्रमुख बाधा बनाता है। हाथी आवास क्षेत्र में रेलवे लाइन का निर्माण भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  3. कार्बन सिंक का कार्बन उत्सर्जक बनना ऐसे समृद्ध और घने वन अपने विशाल जैव विविधता के साथ महत्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं। इसलिए, जब हम इन कार्बन सिंकों को काटते या नष्ट करते हैं, तो वे अनिवार्य रूप से कार्बन उत्सर्जक बन जाते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।

2022 तक, छत्तीसगढ़ विधानमंडल ने हसदेव वनों में खनन को रोक दिया था, लेकिन 2023 में छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके विपरीत कदम उठाए। चाहे कोई भी पार्टी सरकार में रही हो, लेकिन हसदेव निश्चित रूप से पूंजीवाद के हाथों बिक गया है।

(H) छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में, खनन और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए वनों की कटाई ने आदिवासी समुदायों का विस्थापन किया है। उनके वन भूमि के नुकसान ने इन समुदायों को नक्सल आंदोलन की ओर धकेल दिया है, ताकि वे शोषण का विरोध कर सकें और अपनी भूमि की पुनः प्राप्ति कर सकें। (ये टिप्पणियाँ मेरी व्यक्तिगत दृष्टि को दर्शाती हैं)

आभार : निहाल बिस्वास

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Janmat News

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