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जमात, रजाकार, मुजीबुर रहमान… इन किरदारों को जाने बिना बांग्लादेश में मचे बवाल को समझ नहीं पाएंगे!

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शेख़ हसीना

.ख़ालिदा ज़िया

आवामी लीग  

स्थापना 01 सितम्बर 1978 को हुई. फ़ाउंडर थे, बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जनरल ज़ियाउर रहमान. 1981 में उनका क़त्ल हो गया. तब उनकी पत्नी ख़ालिदा ज़िया ने BNP की कमान अपने हाथ में ले ली. 2018 में हसीना सरकार ने ख़ालिदा ज़िया को जेल भेज दिया. इसके बाद उनके बेटे तारिक रहमान ने पार्टी का काम संभाला. 1991 के बाद हुए लोकतांत्रिक चुनावों में BNP और आवामी लीग के बीच ही सत्ता बदलती रही है.!

ये जमात-ए-इस्लामी का स्टूडेंट विंग है. स्थापना फ़रवरी 1977 में हुई थी. ढाका यूनिवर्सिटी में. कहने को ये एक छात्र संगठन है, मगर इसका स्वरूप किसी कट्टर धार्मिक गुट जैसा है. ये हिंसा की कई घटनाओं में शामिल रही है. फ़रवरी 2014 में अमेरिका के एक थिंक टैंक IHS Jane ने ग्लोबल टेररिज्म एंड इन्सर्जेंसी इंडेक्स जारी किया था. इसके मुताबिक़, छात्र शिबिर दुनिया में तीसरा सबसे हिंसक गैर-सरकारी संगठन था. छात्र शिबिर ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

हाल के आरक्षण-विरोधी प्रोटेस्ट में भी छात्र शिबिर पर हिंसा फैलाने के आरोप लगे थे. एक अगस्त 2024 को शेख़ हसीना सरकार ने छात्र शिबिर पर बैन लगा दिया था. एंटी-टेरर लॉ के तहत.

रज़ाकार

रज़ाकार लफ़्ज़ का शाब्दिक अर्थ है वॉलंटियर या कार्यकर्ता. यानी, ऐसा शख़्स जो बिना किसी वेतन के किसी कार्य में सेवाभाव से भाग लेता है. बांग्लादेश में रज़ाकार उन लोगों को कहा जाता है जिन्होंने 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की मदद की. कई इतिहासकार मानते हैं कि रज़ाकार मुख्य रूप से उर्दूभाषी लोग थे, जो बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान चले गए. हालिया प्रोटेस्ट में रज़ाकार शब्द चर्चा में रहा. दरअसल, शेख़ हसीना ने 14 जुलाई को कहा था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रज़ाकारों के वंशजों को आरक्षण मिलेगा?” प्रदर्शनकारी छात्र इससे नाराज़ हो गए थे. जिसके बाद एक नारा चला – चियेचेलम ओधिकार, होये गेलम रज़ाकार. यानी, हमने अपना अधिकार मांगा और आपने हमें रज़ाकार बना दिया. प्रोटेस्ट के हिंसक होने में इसकी बड़ी भूमिका थी!.

अंतरिम सरकार

जब स्थाई सरकार समय से पहले गिर जाती है, और, नई सरकार का गठन तुरंत संभव नहीं होता. तब स्थाई सरकार चुने जाने तक एक अंतरिम सरकार बनाई जाती है. ये एक अस्थायी प्रशासन का काम करती है. अंतरिम सरकार के पास स्थाई सरकार से कम शक्तियां होती हैं. शेख़ हसीना के इस्तीफ़े के बाद बांग्लादेशी सेना ने देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. फिर राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने मौजूदा संसद भंग कर दी. इस तरह बांग्लादेश में चुनी हुई सरकार नहीं बची. अब एक अंतरिम सरकार का गठन होना है. ये आम चुनाव होने तक देश का नेतृत्व करेगी!.

नाहिद इस्लाम

मोहम्मद यूनुस

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Janmat News

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