Bangladesh Unrest: बांग्लादेश में प्रदर्शन और हिंसा के लंबे दौर के बाद अब ख़बरें हैं वहां एक अंतरिम सरकार बनने जा रही है. Muhammad Yunus इस सरकार के मुखिया होंगे!
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश (Bangladesh Unrest) चर्चा में है. आरक्षण-विरोधी प्रोटेस्ट और शेख़ हसीना के तख़्तापलट (Sheikh Hasina) की वजह से. इस बीच कुछ ऐसे नाम और संगठन लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. बांग्लादेश के मौजूदा हालात समझने के लिए इनके बारे में जानना जरूरी है!
शेख़ हसीना
शेख़ हसीना बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री हैं. पहली बार 1996 में सत्ता में आई थीं. पहला कार्यकाल 2001 तक चला. दूसरा कार्यकाल 2009 में शुरू हुआ. फिर लगातार चार चुनाव जीते. जनवरी 2024 में पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. आरक्षण-विरोधी प्रोटेस्ट के बाद उन्हें 5 अगस्त को इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर वो बांग्लादेश छोड़कर भारत चली आईं. शेख़ हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. शेख़ हसीना को बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति का श्रेय दिया जाता है. हालांकि, प्रधानमंत्री रहते हुए अक्सर उनपर तानाशाही के आरोप भी लगते रहे!
.शेख़ मुजीबुर रहमान
शेख़ मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है. उन्हें बांग्लादेश का संस्थापक भी माना जाता है. हालिया प्रदर्शनों के बाद उनकी मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है. शेख़ मुजीब आवामी लीग के सबसे बड़े नेता थे. मार्च 1971 में पाकिस्तानी फ़ौज ने उनको गिरफ़्तार कर लिया था. इसी के बाद आज़ादी के आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा. दिसंबर 1971 में बांग्लादेश बना तो वो रिहा हुए. आज़ादी के बाद शेख़ मुजीब पहले राष्ट्रपति बने. बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी ले ली. मगर अपना पहला कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए. 15 अगस्त 1975 को सेना के एक धड़े ने उनके घर में उनका क़त्ल कर दिया. उस हत्याकांड में उनके परिवार के 17 सदस्य मारे गए थे. उस वक़्त शेख़ मुजीब की बेटियां शेख़ हसीना और शेख़ रेहाना जर्मनी में थीं!
.ख़ालिदा ज़िया
ख़ालिदा ज़िया बांग्लादेश की सियासी कहानी के कुछ केंद्रीय किरदारों में से एक हैं. 1991 में वो बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. अभी तक दो कार्यकाल संभाल चुकी हैं. पहली बार, 1991 से 1996 तक और दूसरी बार 2001 से 2006 तक. उनके पति ज़ियाउर रहमान 1977 से 1981 तक बांग्लादेश के राष्ट्रपति रहे. ज़ियाउर रहमान मिलिट्री जनरल थे. उनका भी सैन्य विद्रोह में क़त्ल हुआ था. उनके बाद ख़ालिदा ज़िया ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की कमान संभाली. अभी भी वो BNP की अध्यक्ष हैं. 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें 17 बरस की सज़ा सुनाई गई. 5 अगस्त को शेख़ हसीना ने इस्तीफ़ा देने के बाद देश छोड़ दिया. इसके बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने ख़ालिदा ज़िया को रिहा करने का आदेश दिया!
आवामी लीग
आवामी लीग बांग्लादेश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है. जून 1949 में स्थापना हुई. तब बांग्लादेश, पाकिस्तान का हिस्सा था. इसको पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. पूर्वी पाकिस्तान में भाषा आंदोलन को आवामी लीग ने लीड किया था. 1960 के दशक में पार्टी की कमान शेख़ मुजीब के पास आई. भाषा का आंदोलन आगे चलकर आज़ादी की लड़ाई में बदल गया. जिसमें बाद में भारत भी शामिल हुआ. 1971 में आज़ादी के बाद आवामी लीग को सत्ता मिली. 1975 में शेख़ मुजीब की हत्या के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया. 1996 में वापसी हुई. 2001 तक उनकी सरकार चली. 2009 में तीसरी दफ़ा सत्ता में आई. तब से पार्टी ने लगातार चार चुनाव जीते. 05 अगस्त 2024 तक उन्हीं की सरकार चल रही थी. शेख़ हसीना 1981 से आवामी लीग की प्रेसिडेंट हैं!
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP)
स्थापना 01 सितम्बर 1978 को हुई. फ़ाउंडर थे, बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जनरल ज़ियाउर रहमान. 1981 में उनका क़त्ल हो गया. तब उनकी पत्नी ख़ालिदा ज़िया ने BNP की कमान अपने हाथ में ले ली. 2018 में हसीना सरकार ने ख़ालिदा ज़िया को जेल भेज दिया. इसके बाद उनके बेटे तारिक रहमान ने पार्टी का काम संभाला. 1991 के बाद हुए लोकतांत्रिक चुनावों में BNP और आवामी लीग के बीच ही सत्ता बदलती रही है.!
जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश
ये बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी है. इसकी शुरुआत भारत के विभाजन से भी पहले हुई थी. 1941 में. जमात-ए-इस्लामी के तौर पर. बंटवारे के बाद ये जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान हो गई. इसने बांग्लादेश की आज़ादी का विरोध किया था. वे पाकिस्तान का साथ दे रहे थे. उसके नेताओं नेताओं पर 1971 की जंग के दौरान हत्या, अपहरण और बलात्कार के आरोप लगे. कइयों को बाद में सज़ा भी मिली. बांग्लादेश की आज़ादी के बाद जमात को बैन कर दिया गया. उसके अधिकतर नेता बांग्लादेश छोड़कर पाकिस्तान भाग गए. 1975 में शेख़ मुजीब की हत्या के बाद जमात पर लगा बैन हटा लिया गया. तब जाकर जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की स्थापना हुई. 2013 में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया. चुनावों में हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी. 01 अगस्त 2024 को शेख़ हसीना सरकार ने जमात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया. 05 अगस्त को प्रोटेस्ट बढ़ने के बाद शेख़ हसीना को इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर उन्हें बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा. उनके जाने के बाद आर्मी ने कमान अपने हाथों में ले ली. अंतरिम सरकार बनाने का एलान किया. इस सरकार में जमात-ए-इस्लामी भी शामिल हो सकती है!
.बांग्लादेश इस्लामिक छात्र शिबिर
ये जमात-ए-इस्लामी का स्टूडेंट विंग है. स्थापना फ़रवरी 1977 में हुई थी. ढाका यूनिवर्सिटी में. कहने को ये एक छात्र संगठन है, मगर इसका स्वरूप किसी कट्टर धार्मिक गुट जैसा है. ये हिंसा की कई घटनाओं में शामिल रही है. फ़रवरी 2014 में अमेरिका के एक थिंक टैंक IHS Jane ने ग्लोबल टेररिज्म एंड इन्सर्जेंसी इंडेक्स जारी किया था. इसके मुताबिक़, छात्र शिबिर दुनिया में तीसरा सबसे हिंसक गैर-सरकारी संगठन था. छात्र शिबिर ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.
हाल के आरक्षण-विरोधी प्रोटेस्ट में भी छात्र शिबिर पर हिंसा फैलाने के आरोप लगे थे. एक अगस्त 2024 को शेख़ हसीना सरकार ने छात्र शिबिर पर बैन लगा दिया था. एंटी-टेरर लॉ के तहत.
रज़ाकार
रज़ाकार लफ़्ज़ का शाब्दिक अर्थ है वॉलंटियर या कार्यकर्ता. यानी, ऐसा शख़्स जो बिना किसी वेतन के किसी कार्य में सेवाभाव से भाग लेता है. बांग्लादेश में रज़ाकार उन लोगों को कहा जाता है जिन्होंने 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की मदद की. कई इतिहासकार मानते हैं कि रज़ाकार मुख्य रूप से उर्दूभाषी लोग थे, जो बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान चले गए. हालिया प्रोटेस्ट में रज़ाकार शब्द चर्चा में रहा. दरअसल, शेख़ हसीना ने 14 जुलाई को कहा था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रज़ाकारों के वंशजों को आरक्षण मिलेगा?” प्रदर्शनकारी छात्र इससे नाराज़ हो गए थे. जिसके बाद एक नारा चला – चियेचेलम ओधिकार, होये गेलम रज़ाकार. यानी, हमने अपना अधिकार मांगा और आपने हमें रज़ाकार बना दिया. प्रोटेस्ट के हिंसक होने में इसकी बड़ी भूमिका थी!.
अंतरिम सरकार
जब स्थाई सरकार समय से पहले गिर जाती है, और, नई सरकार का गठन तुरंत संभव नहीं होता. तब स्थाई सरकार चुने जाने तक एक अंतरिम सरकार बनाई जाती है. ये एक अस्थायी प्रशासन का काम करती है. अंतरिम सरकार के पास स्थाई सरकार से कम शक्तियां होती हैं. शेख़ हसीना के इस्तीफ़े के बाद बांग्लादेशी सेना ने देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. फिर राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने मौजूदा संसद भंग कर दी. इस तरह बांग्लादेश में चुनी हुई सरकार नहीं बची. अब एक अंतरिम सरकार का गठन होना है. ये आम चुनाव होने तक देश का नेतृत्व करेगी!.
नाहिद इस्लाम
नाहिद इस्लाम ढाका यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के छात्र हैं. बांग्लादेश में हुए छात्र आंदोलनों का चेहरा बनकर उभरे हैं. वो प्रदर्शनकारी छात्रों के गुट ‘स्टूडेंट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ के कोऑर्डिनेटर हैं. यही गुट आरक्षण-विरोधी प्रोटेस्ट को लीड कर रहा था. नाहिद के नेतृत्व में छात्रों ने 4 अगस्त से पूर्ण असहयोग आंदोलन का एलान किया था. ये भी कहा था कि अगर सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी तो हम हथियार उठाने के लिए भी तैयार हैं. शेख़ हसीना के जाने के बाद नाहिद राष्ट्रपति और तीनों सेनाओं के मुखिया से बात कर रहे हैं. उन्होंने अंतरिम सरकार का खाक़ा भी पेश किया है. इस सरकार में उनकी भूमिका अहम हो सकती है!
मोहम्मद यूनुस
हाल के प्रोटेस्ट में शामिल छात्र नेताओं ने मोहम्मद युनूस को अंतरिम सरकार का सलाहकार बनाने का प्रस्ताव दिया था. बांग्लादेशी मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़, वो अंतरिम सरकार को लीड करेंगे. युनूस को बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की शुरुआत का श्रेय मिलता है. ये बैंक ग़रीबों को छोटा-मोटा क़र्ज देता है. बदले में कुछ गिरवी रखने की मजबूरी नहीं होती. यही वजह है कि यूनुस बांग्लादेश में खासे लोकप्रिय हुए!.
यूनुस ने 1961 से 65 तक चिटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाया. इसके बाद उन्हें ‘फ़ुलब्राइट स्कॉलरशिप’ मिली. फिर अमेरिका गए. युनूस 1972 में वापस लौटे. चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकॉनमिक्स डिपार्टमेंट के हेड बने. फिर 1974 में बांग्लादेश में भयंकर अकाल पड़ा. युनुस ने अपने स्टूडेंट्स से किसानों की मदद करने को कहा. लेकिन ये बहुत कारगर नहीं रहा. यूनुस ने माइक्रो फाइनेंस शुरू किया. शुरूआत में किसानों को 20 से 25 डॉलर तक की मदद दी जाती थी. ये मॉडल इतना पॉपुलर हुआ कि 1983 में बांग्लादेश सरकार ने इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया. 2006 में युनूस और उनके ग्रामीण बैंक को नोबेल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया!.
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फिर आया 2010. युनूस पर नॉर्वे के फ़ंड्स के दुरुपयोग के आरोप लगे. नॉर्वे ने आरोपों को खारिज किया. मगर बांग्लादेश सरकार ने जांच शुरू की. 2011 में उनको ग्रामीण बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर पद से ये कहकर हटा दिया गया कि उन्हें 60 की उम्र में रिटायर किया जा रहा है. मगर वो सन 2000 में ही 60 बरस के हो चुके थे. उन्होंने फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी. लेकिन अदालत ने उनका निष्कासन बरकरार रखा. शेख़ हसीना सरकार में उनके ख़िलाफ़ दो सौ से ज़्यादा मुकदमे दर्ज किए गए!.