छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढाने हुई पहल
हर साल की तरह इस बार भी छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति बोली गीत संगीत को आगे बढ़ाने के लिए इस साल भी शनिवार को टिकरापारा स्थित श्री हरदेव लाला मंदीर परिसर मे उजियारी हमर चिन्हारी का आयोजन हुआ उजियार परिवार के इस आयोजन में छतीसगढ़ के गीत-संगीतकार, लोक गायक व अपने क्षेत्र में महारथ रखने वाले नामचीन व नवोदित कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दि इसमे कविता वासनिक, सुशील भोले (वरिष्ठ साहित्यकार) पी. सी. यादव ,मीर अली जी (कवि, गीतकार) राकेश तिवारी (गीतकार), गोविंद धनकर, राजू शर्मा, डां मणिका शर्मा, अनुराग शर्मा , युक्ता बछौर, विशाल चित्रकला से ने अपने विचार व प्रस्तुति दिया । उजियार परिवार से नागेश वर्मा, प्रोजल सिंह राजपूत नितिश यादव, और लोकेगश यादव, आदित्य साहू कोमलकांत यादव गोपिका साहू ने आयोजन सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कार्यक्रम में शामिल गीतकार, साहित्यकार, के प्रस्तुति के कुछ अंश
“मोर परिभाषा छत्तीसगढ़, मोर अभिलाषा छत्तीसगढ़ , जिनगीं के आशा छत्तीसगढ़, का ले के जनम दोबारा फेर आबे ते छत्तीसगढ़”
छत्तीसगढ़ के सेवा बर पाँव जमा के रहना है, नान-नान लईका ल सिखोना है, कोनो मेर बोलथव त मेहा अपन माई भाखा में बोलथव माई भाखा नवा चोउर के पसाय कस, चोघर होथे, माई भाखा दाई के दूध कस आरुग अव अवगर होथे, अरे जेन मनखे ल नईये अपन माई भाखा के गुमान तेन मनखे त आय कठवा पखरा के समान ।
अधियार ल मिटाये बर उजियार बगराये बर ऊजियार ल गाड़ा- गाड़ा बधाई – डॉ. पी.सी. यादव
मैं छत्तीसगढ़ ले आये हव ग,
मैं छतीसगढ़ ले आये हव जी,
दया मया के मोटारा ल बाँध के लाये हव ,
तुहर गाँव ले आये हवग ॥
राकेश तिवारी (गीतकार, संगीतकार)
हमर जतका संस्कृति हे, जो कला जगत हे, ओकर उजियार करना हे, फैलाना है, हमर चिन्हारी हमर गुत्तुर गोंठ, ल आगे बढ़ाना है। जतका परिवार हे उजियार हमर चिन्हारी के ओला में कोटी – कोटी धन्यवाद देना चाहत हव कि ऐसने मौका म हमन ल याद करे हव, हमन संकल्प लेके जाबो उजियार हमर चिन्हारी के ओलो अपन घर- घर में लाना है, सबले पहिली गोठयाना हे, ये पिज्जा बर्गर ल त्यागना हे तुमन ल अपन घर के जतका शादी बर-ब्याह में ठेठरी, खुरमी ल बनवाना है। शादी के कार्ड ल छतीसगढ़ी मे छपवाना हे आज हमन ला रोना आथे की छतीसगढ़ी चीज देखेल नहीं मिलय जब ये चीज बड़ही जब हम अपन बोली भाखा ल पहीने ओढे मे अव ओला संग्रह करके दिखाबो बढ़ाबो
राजू शर्मा (वरिष्ठ कलाकार)
चल थाम नगरिहा नागर ल, दाई के दुलारवा बेटा, ददा के खरतरिहा बेटा, किरया हे, तोला बेटा मोरे छतीसगढ़ सोनहा शान ल आज हिंदुस्तान ल जरूरत हे ,तोर उदासी मेंअमरईया ल लहू लहूहान भूईया ल सोन के चिरईया ल जरूरत हे तोर
गोविद धनकर
हमन केवल कला के बात करथन ददरिया, सुवा कर्मा हकीकत छत्तीसगढ़ी आध्यात्मिक संस्कृति के बात होना चाहिए अभी का होवत हे बाहर के मन आये हिंदू-हिंदू किथे हमर आदमी मन ल बेवकूफ बना के चल देथे, काबर कि हमर आदमी मन आध्यात्मिक संस्कृति ल जानत नहीं ये। छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप से अतका समृद्ध हे हमला बाहर न ककरो संग के जरूरत हे न कोनो धर्म के जरूरत है सब कुछ है हमर छत्तीसगढ़ में केवल जरूरत है अपन आप ल जाने के पहचाने के केवल नाचा गमत के बात मत करव, कला अव संस्कृति म अंतर समझे ल पड़ही, संस्कृति- संस्कृति कही के कला ल दिखा देथे हमनल ठग के चल देथे जब संस्कृति के बात आथे हिंदू कही देथे, सनातन कही देथे ।
अब केवल मे ह संस्कृति ऊपर लिखथव यहाँ के जीवनपद्धति यहाँ के पूजा उपासना ऊपर लिखथव मे चाहत हव ओकर बात होवय न केवल नाचा-गमन के तब हमन बाहरी आदमी से मुक्ति पाबो सुशील भोले (वरिष्ठ साहित्यकार)
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