पोला त्योहार इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है। बच्चे मिट्टी के बैल चलाते हैं। इस दिन बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। और इस दिन में बैलो से कोई काम भी नहीं कराया जाता है। और घरों में महिलाएं व्यंजन बनाती हैं।
छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने 2 सिंतबर 2024, सोमवार को पोला और 11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार को महानवमी के अवसर पर स्थानीय अवकाश घोषित किया है। नवा रायपुर अटल नगर एवं रायपुर शहर में स्थित सभी सरकारी कार्यालयों व संस्थाओं के लिए कैलेंडर वर्ष 2024 के लिए स्थानीय अवकाश घोषित किया है।
छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति और त्योहारों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है पोला, जिसे हर साल भादो की अमावस्या को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें अन्नादाता के साथी यानी बैल को सजाकर विशेष पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है इसलिए यहां कृषि कार्य में बैल का विशेष योगदान होता है, जहां बोआई से लेकर बियासी तक किसान बैल का उपयोग करते हैं। मिट्टी के बैल की पूजा करने के बाद बच्चे मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी के बैलों के साथ खेलते हैं। पोला तिहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है।
इस त्योहार में बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है। उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। घरों में बच्चे मिट्टी से बने नंदीबैल और बर्तनों के खिलौनों से खेलते हैं। घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है। बैलों की दौड़ भी इस अवसर पर आयोजित की जाती है। पोला के साथ साथ मालीघोरी क्षेत्र में तीजा (हरतालिका तीज) की विशिष्ट परम्परा है। महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं। तीजा मनाने के लिए बेटियों को पिता या भाई ससुराल से लिवाकर लाते हैं। डौंडी निवासी निर्मल सोनी ने बताया कि पोला का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मालीघोरी क्षेत्र में मनाया जाता है। विभिन्ना प्रकार के रंग-बिरंगे मिट्टी के खिलौने और बैल मालीघोरी के बाजारों में सज गए हैं।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पोला महोत्सव मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से यह पर्व महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यह पर्व कृषकों के मुख्य आधार स्तम्भ बैल को समर्पित माना जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक समुदाय जो खेतों की जुताई और माल-परिवहन के लिए पूरी तरह बैलों पर ही निर्भर रहते हैं, इनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए बड़ी धूमधाम से यह पर्व सेलिब्रेट करते हैं. इस दिन बैलों को पूरी तरह आराम देते हुए उन्हें पूरे सम्मान के साथ उनकी सेवा एवं पूजा की परंपरा है. इस वर्ष 2 सितंबर 2024, को बैल पोला महोत्सव मनाया जाएगा.
बैल पोला का इतिहास
भारत में कृषि के प्रमुख स्रोतों में प्रमुख है बैल, जिसका जुताई-गुड़ाई से लेकर मंडी तक माल ढुलाई तक में इस्तेमाल किया जाता है. उनके प्रति आभार व्यक्त करने हेतु कृषक पोला उत्सव मनाते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस दिन महाबलशाली असुर पोलासुर ने बाल कृष्ण पर हमला किया था, तब बाल कृष्ण ने हंसते-हंसते उसका वध किया था. इसलिए इस दिन बच्चों को भी सम्मानित किया जाता है. यह पर्व न केवल किसानों और मवेशियों के बीच के रिश्ते को दर्शाता है, बल्कि हमारी संस्कृति में पशुओं के प्रति दिए जाने वाले सम्मान को भी दर्शाता है. इस दिन किसान अच्छी फसल और अपने मवेशियों की खुशहाली के लिए ईश्वर से आशीर्वाद मांगते हैं.
पोला पर्व की तैयारियां घर घर शुरु हो चुकी हैं. घरों में पारंपरिक मिठाई और नमकीन बनने की शुरुआत हो चुकी है. मिठाई खुरमी और नमकीन ठेठरी का पोला पर्व में बनाया जाना खास होता है. मिट्टी के बने बैलों की भी इस बार अच्छी डिमांड है. पोला पर्व पर मिट्टी के बने खिलौने बच्चों को खूब भाते हैं.
पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जानते हैं लोग: कुछ जगहों पर पिठोरी की पूजा होती है तो पिठोरी अमावस्या के नाम से जानी जाती है. श्रद्ध की अमावस्या होने के कारण स्नान करना भगवान शिव की पूजा करना मंदिर जाना इत्यादि चीज होती है. लेकिन छत्तीसगढ़ में आज के दिन वृषभ यानी बैलों की पूजा होती है. 2 सितंबर को संपूर्ण दिवस पोला का पर्व मनाया जाएगा जो कि अगले दिन सुबह 5:42 तक अमावस्या तिथि रहेगा.
गाय और बैलों की होती है पूजा: गाय और बैलों को लक्ष्मी जी के रूप में देखा जाता है और इसे पूजनीय माना गया है. पोला पर्व में बैलों की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है, जिनके पास बैल नहीं होते हैं वह मिट्टी के बैलों की पूजा आराधना करके चंदन टीका लगाकर उन्हें माला पहनाते हैं.