सुख के छइँहा म बेरा कइसे पहाथे पता नइ चलय बाबू फेर पीरा के तो कामेच आए पीरा देना
बेरा के गोड़ नइ होए फेर रुकय काबर नइ? मन म बड़ किसम-किसम के सवाल अब आथे। ‘अब आथे’ के मतलब ये हे कि 27 से 30 बछर के उमर म जब लईका आथे त ओहा अपन ननपन ल छोड़ के आथे अउ फेर जवानी के ओधा म एक सुलझे हुए जिम्मेदार मनखे के रूप म जिनगी के अध रद्दा म खड़े रहिथे।
ये दे कालिच तो 20 बछर के रेहेंव पाछु 10 बछर कइसे सिरइस कोनो गम नइ पायेंव।सियान मन कहिथें कि सुख के छइँहा म बेरा कइसे पहाथे पता नइ चलय बाबू फेर पीरा के तो कामेच आए पीरा देना। कभू सोचथँव की सियान मन के गोठ सहिच होही, त का सुख के छइँहा अतका सुग्घर होथे की ननपन ल गँवाए के पीरा नइ जनाए? जनावत तो होही फेर,जिम्मेदारी ल निभाए बर पीरा ल बिसारे बर परथे।
सुख के पयडगरी ह घलो सिरा जाथे अउ दुख कतका दिन रुकही वहु ल तो जाए बर ही परही फेर हाँ जवानी के जिम्मेदारी म ननपन लहुट के नइ आवय।आज हमर राज्य हमर देस के युवा मन नउकरी पाए बर कतका मेहनत करथें।ए जात्रा म ओमन अपन सबो जिनिस के तियाग घलो करथें। पारा-परोस,संगी-संगवारी, घर-परिवार के ताना बाना ल तो सुनथे ही संग म अपन मन के अंतर्द्वंद अपन पीरा ल संभालत अपन देखे सपना के रद्दा म रेंगथे। ओकर देखे सपना का बस ओकरेच होथे? हो सकथे ओकर सपना के पाछु लइकई म ओकर दिमाक म बड़का सपना डारे के बुता करईया दाई-ददा, संगी अउ ओला पढ़ाए गुरुजी मन के सुआरथ घलो होही। दूसर के सुवारथ ल अपन सपना मान के ओला पाए बर सरलग अड़े रहिथे अउ जब मन म चलत उथल-पुथल ले उबरे बर काकरो संग के जरूरत होथे त खुद ल अकेल्ला पाथे।अइसन लईका मिलही कोनो चहा के ठेला म, अकेल्ला मेला म,मिलही खुद ले लड़त पुस्तक म मुड़ी राखे फेर संग देवइया कोनो नइ मिलय।
कोनो लईका जब कुछु बन जाथे त ओकर तियाग ओकर बलिदान के गोठ कोनो नइ करय सब ल दिखथे एक अधिकारी, एक डॉक्टर,एक वकिल। संघर्ष के आगी म अपन लइकई, अपन संगी-साथी अपन खुशी ल तियागने वाला कोनो ल नइ दिखय। भविष्य म सुख ले जिए बर वर्तमान बेरा म मेहनत जरूरी हे फेर जब बछर भर बाद पाछु लहूट के देखबो त हमन ल मिलही भविष्य बर गँवाए हमर ननपन,जुन्ना फोटू जेमा हासत तो दिखबो फेर ओला हाँस के नइ देख सकन,दाई-ददा संग बइठ के गोठियाए वो बेरा,संगी- संगवारी के हाँसी-ठिठोली बस इहिच दिखही।घर ल सिरजाए बर घर के डेहरी ल छोड़े बर लागथे नइ जानत रेहेंव कि सबो जिनिस छूट जाही।
मैं सरबस हारेंव ए मंजिल
देख का का खोए हँव तोला पाए बर।
जोहार
लिखईया:- नागेश कुमार वर्मा
टिकरापारा रायपुर