बिलासपुर। । निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप तभी होना चाहिए जब इससे कोई महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित प्रभावित होता हो, प्रक्रिया पूरी होते समय एक नई निविदा प्रक्रिया शुरू करने से कार्य मे अनावश्यक विलंब होगा और वित्तीय प्रभाव भी पड़ेगा। हाईकोर्ट ने इस आशय के अपने महत्वपूर्ण निर्णय में निविदा और अनुबंध मामलों में न्यायिक समीक्षा के दायरे को स्पष्ट किया है। यह प्रकरण जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट, जांजगीर चांपा द्वारा निविदा देने को लेकर एक विवाद से संबंधित था। याचिकाकर्ता, जनमित्रम कल्याण समिति, जो छत्तीसगढ़ सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत एक गैर-सरकारी संगठन है, ने संगम सेवा समिति को ठेका देने को चुनौती दी थी। जनमित्रम समिति का कहना था कि आवश्यक पात्रता मानदंडों का पालन नहीं किया गया है। यह निविदा जांजगीर चांपा जिले- में खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने के लिए चुनौती दी थी, याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि संगम सेवा समिति ने चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा प्रमाणित टर्नओवर प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया था, जो निविदा की तकनीकी योग्यताओं के अनुसार एक अनिवार्य आवश्यकता थी। इसके बावजूद, उत्तरदाता अधिकारियों ने संगम सेवा समिति से अनुबंध कर ठेका दे दिया।
निर्णय में यह निष्कर्ष निकाला है कि, याचिकाकर्ता ने न्यायिक हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत नहीं किए हैं। कोर्ट ने दोहराया कि, मामूली प्रक्रियात्मक कमी पर ध्यान देने से महत्वपूर्ण यह है कि सार्वजनिक परियोजनाओं को पटरी से नहीं उतरना चाहिए।